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युगवीर निवन्धावली
नोटका रूप भी कुछ दूसरा ही होता और वह शायद आपको
कही अधिक अप्रिय जान पडता ।
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इसी फुटनोटकी चर्चा करते हुए वैरिष्टर साहब पूछते हैं"क्या सपादकजीने किसी लेख या पुस्तकमे जो हिन्दूने छपवाई हो फुटनोट जैसा उन्होने खुद जोडनेका तरीका इस्तियार किया है, कही पढा है ?"
इस प्रश्नपरसे वैरिष्टर साहवका हिन्दीपत्र ससार- विपयक भारी अज्ञान पाया जाता है, क्योकि इससे मालूम होता है कि एक तो आप यह समझ रहे हैं कि सम्पादक 'अनेकान्त' ने ही लेखोपर फुटनोटो के जोडनेका यह नया तरीका ईजाद और इख्तियार किया' है, इससे पहले उसका कही कोई अस्तित्व नही था, दूसरे यह कि हिन्दुओके द्वारा प्रकाशित लेखादिकोमे इस प्रकारके नोट लगाने के तरीकेका एकदम अभाव है । परन्तु ऐसा नही है, हिन्दी - पत्रो फुटनोटका यह तरीका कमीवेशरूपमे वर्षो से जारी है । जैनहितेपी भी फुटनोट लगते थे, जिसे आप एक वार हिन्दुस्तान भरके पत्रोमे उत्तम तथा योरोपके फर्स्ट क्लास जनरल्सके मुकावलेका पर्चा लिख चुके हैं, और वे प० नाथूराम जी प्रेमीके सम्पादनकालमे भी लगते रहे हैं । यदि वैरिष्टर साहव उक्त प्रश्नसे पहले 'त्यागभूमि' आदि वर्तमानके कुछ प्रसिद्ध हिन्दू पत्रोकी फाइले ही उठाकर देख लेते तो आपको गर्वके साथ ऐसा प्रश्न पूछ कर व्यर्थ ही अपनी अज्ञताके प्रकाश द्वारा हास्यास्पद वनकी नौबत न आती । अस्तु, पाठकोके सतोपके लिये तीसरे वर्षकी 'त्यागभूमि' के अक न० ४ परसे सपादकीय फुटनोटका एक नमूना नीचे दिया जाता है इस अकमे और भी कई लेखो पर नोट हैं, जो सब 'अनेकान्त' के नोटोकी रीति-नीतिसे तुलना किये जा सकते हैं :
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