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ब्रह्मचारीजीकी विचित्र स्थिति और अजीव निर्णय !
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ता० ३ मई सन् १९३४ के 'जैन मित्र' में व्र० शीतलप्रसादजीने मेरी लिखी हुई 'भगवान् महावीर और उनका समय' नामक पुस्तककी समालोचना प्रकाशित की है । इस समालोचनामे पुस्तकको बहुत उपयोगी बतलाते हुए और उसकी दूसरी किसी बातपर आपत्ति न करते हुए सिर्फ एक वातपर आपत्ति की गयी है और वह इस वातपर कि मैंने वीद्धोके 'सामगामसुत्त' मे वर्णित महावीरके उस मृत्यु-समाचारको, जो चुन्द द्वारा बुद्धको पहुँचाया गया था, असत्य क्यो मान लिया ओर क्यो बुद्धके शरीर त्यागको महावोरके निर्वाणसे पहलेका अनुमान कर लिया । पुस्तकको पढकर कोई भी सहृदय पाठक सहज ही यह समझ सकता है कि न तो मेरी उक्त मान्यता निराधार थी और न अनुमान करना निर्हेतुक ही था । मैंने वस्तुस्थितिकी सूचक जिन घटनाओ एव प्रमाणोके आधारपर ऐसा किया उनका उल्लेख पुस्तकमे पृष्ठ ५१ से ५३ तक किया गया है । यहाँ पर पाठकोकी जानकारीके लिये उनका सार प्राय पुस्तकके ही शब्दोमं दिया जाता है और वह इस प्रकार है
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(१) खुद वौद्ध ग्रथोमे बुद्धका निर्वाण अजातशत्रु ( कुणिक ) के राज्यके आठवें वर्ष बतलाया है ।
तत्कालीन तीर्थकरोकी
(२) वौद्धोके 'दीर्घनिकाय 'मे मुलाकातके अवसरपर अजातशत्रुके मत्रीके मुखसे निग्गठनातपुत्त