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युगवीर-निवन्धावली
वेश्याओंसे विवाह पुस्तकके आशय-उद्देश्यका विवेचन और स्पष्टीकरण करने आदिके बाद अब मैं उदाहरणोकी उन बातोपर विचार करता हूँ, जिनपर समालोचनामे आक्षेप किया गया है, और सबसे पहले इस चारुदत्तवाले उदाहरणको ही लेता हूँ। यही पहले लिखा भी गया था, जैसा कि शुरूमे जाहिर किया जा चुका है। समालोचकजीने जो इसे वसुदेवजीवाले उदाहरणके बाद लिखा वतलाया है वह उनकी भूल है।
इस उदाहरणमे सिर्फ दो बातोपर आपत्ति की गई है। एक तो वसतसेना वेश्याको अपनी स्त्रीरूपसे स्वीकृत करने अथवा खुल्लमखुल्ला घरमे डाल लेनेपर, और दूसरी इस वातपर कि चारुदत्तके साथ कोई घृणाका व्यवहार नही किया गया। इनमेसे दूसरी बातपर जो आपत्ति की गई है वह तो कोई खास महत्त्व नहीं रखती। उसका तात्पर्य सिर्फ इतना ही है कि 'सप्तव्यसनोमें वेश्या-सेवन भी एक व्यसन है, इस व्यसनको सेवन करनेवाले बहुतसे मनुष्य हो गये हैं परतु उनमे चारुदत्तका ही नाम जो खास तौरसे प्रसिद्ध चला आता है वह इस बातको सूचित करता है कि इस व्यसनके सेवनमे चारुदत्तका नाम जैसा बदनाम हुआ है वैसा दूसरेका नहीं। नामकी यह बदनामी ही चारुदत्तके प्रति घृणा और तिरस्कार है, इसलिये उस समयके लोग भी जरूर उसके प्रति घृणा और तिरस्कार किये बिना न रहे होगे।' इस प्रकारके अनुमानको प्रस्तुत करनेके सिवाय, समालोचकजीने दूसरा कोई भी प्रमाण किसी ग्रन्थसे ऐसा पेश नही किया जिससे यह मालूम होता कि उस वक्तकी जाति-विरादरी अथवा जनताने चारुदत्तके व्यक्तित्वके प्रति घृणा और तिरस्कारका अमुक व्यवहार किया