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युगवीर-निवन्वावली इसके सिवाय, मैं शास्त्रीजीसे यह भी पूछना चाहता हूँ कि अजमेरमै उनके स्वामी मेठ माहबके मदिरमे जो चारो ओर दीवागेपर शास्त्रोके वाक्य लिखे हुए हैं उनको उस प्रकारले लिखनेका और एक दूसरे मदिरमे जो अयोध्या नगरीकी रचना बनाकर रक्ती गयी है उनको उन प्रकारले बनाकर लनेका कान-ने भगवान्ने उपदेग दिया है और वह उपदेश कीन-ने जैनशास्त्रमे मगृहीन है ? यदि बैना कोई उपदेश नहीं है तब तो भगवान्की तन्य आज्ञा न होने के कारण आपको उन धर्मप्राण सेठोके इस नव कृत्यको भी अधर्म कहना होगा।
गायद उसपर शास्त्रीजी यह कहनेका साहन करें कि किमीकिती मदिरके वर्णनमें चित्रावलीका जो कुछ उल्लेख शास्त्रोमे मिन्नता है उसीका यह सब अनुकरण है। परन्तु इसने काम नहीं
ल सकता. क्योकि प्रथम तो उक्त प्रकारके उरलेखने यह लाजिमी नहीं आता कि उन मदिरकी वह सब चित्रावली भगवान्के उपदेशानुसार ही निर्मित हुई थी~श्रावकोकी भक्ति, रुचि तथा शक्ति आदिके अनुसार वह कल्पित भी हो सकती है। दूसरे, चित्रावलीका सामान्य उल्लेख किसी चित्र-विशेपके लिये कोई गारटी अथवा आज्ञा नहीं बन सकता। उसके लिये चित्रका नामोल्लेखपूर्वक ठीक वैसे ही आकार-प्रकार अथवा रग-रूप वगैरहकी आज्ञाको वतलानेकी जरूरत है, जिससे उसमे प्रमाणता आसके और वह धर्मका-उपासनाका अग वन सके । अन्यथा, निर्दिष्ट प्रकारमे रंगरूपविपयक जरा-सी भी कमी-वेशीकी हालतमे, यह मानना होगा कि उस मदिर अथवा चित्रादिके निर्माणम श्रावकोकी रुचि आदि भी उतने अशोमे कृतकार्य अथवा चरितार्थ हई है । और इसलिये यह नहीं कहा जा सकता कि मदिर-मूतिक