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विवाह-क्षेत्र प्रकाश कुन्तीमद्री च कन्ये द्वे मान्ये स्त्रीगुणभूपणे । लक्ष्मीसरस्वतीतुल्ये भगिन्यौ वृष्टिजन्मिनाम् ॥ १५ ॥ राज्ञो भोजकवृष्टया पत्नी पद्मावती सुतान् । उग्रसेन-महासेन-देवसेनानसूत सा ॥ १६ ॥
-हरिवंशपुराग, १८ वॉ सर्ग। इन वाक्योके द्वारा यह सूचित किया गया है कि 'हरिवशमे राजा 'यदु' का उदय हुआ, उसीसे यादव वशकी उत्पत्ति हुई और वह अपने पुत्र 'नरपति' को पृथ्वीका भार सौप कर, तपश्चरण करता हुआ, स्वर्ग-लोकको प्राप्त हुआ। नरपतिके 'सूर' और 'सुवीर' नामके दो पुत्र हुए, जिन्हे राज्यपर स्थापित करके उसने तप ले लिया। इसके बाद सूरने अपने भाई सुवीरको मथुराम स्थापित करके स्वय सौर्यपुर नगर बसाया, सूरसे 'अन्धकवृष्टि' आदि शूर पुत्र उत्पन्न हुए और मथुराके स्वामी सुवीरसे 'भोजकवृष्टि' आदि वीर पुत्रोकी उत्पत्ति हुई, सूर और सुवीर दोनोने अपने-अपने ज्येष्ठ पुत्र ( अन्धकवृष्टि भोजकवृष्टि) को राज्य देकर सुप्रतिष्ठ मुनिसे दीक्षा ली और सिद्धपदको प्राप्त किया, अन्धकवृष्टिकी सुभद्रा स्त्रीसे समुद्रविजय, अक्षोभ्य, स्तिमितसागर, हिमवान, विजय, अचल, धारण, पूरण, अभिचन्द्र,
और वसुदेव नामके दस महाभाग्यशाली पुत्र उत्पन्न हुए, साथ ही, कुन्ती और मद्री नामकी दो कन्याएँ भी हुई, और राजा भोजकवृष्टिकी पद्मावती स्त्रीसे उग्रसेन, महासेन और देवसेन नामके तीन पुत्र उत्पन्न हुए।'
१ समालोचकजीने, तीन पुत्रोके अतिरिक्त एक पुत्रीके भी नामोल्लेखका पृष्ठ ३ पर उल्लेख किया है । परन्तु देहलीके नये मदिरकी प्रतिमें, यहॉपर, पुत्रीका कोई उल्लेख नहीं पाया जाता। हॉ, उत्तरपुराण