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विवाह-क्षेत्र-प्रकाश होना चाहिये । और खेद है कि समालोचकजीने विना सोचे समझे, जहाँ जो जीमे आया, लिख मारा है । लेखकके शास्त्रीय वर्णनोको इसी तरह 'सर्वथा मिथ्या' और 'शास्त्रविरुद्ध' बतलाया गया है, और यह उनके सर्वथा मिथ्या और शास्त्रविरुद्ध कथनटाइपका एक नमूना है-उसकी खास बानगी है । खाली इस बातको छिपानेके लिये कि 'जरा' ऐसे मनुष्यकी कन्या थी जो म्लेच्छ होनेसे हिंसक और मास-भक्षक कहा जा सकता है, आपने म्लेच्छाचारको ही उलट देना चाहा है, यह कितना दु साहस है । म्लेच्छोका आचार तो हिन्दू ग्रन्थोसे भी मासभक्षणादिकरूप पाया जाता है, जैसा कि 'प्रायश्चित्ततत्त्व' मे कहे हुए उनके बोधायन आचार्यके निम्न वाक्यसे प्रकट है ---
गोमांसखादको यस्तु विरुद्ध बहु भापते ।
सर्वाचारविहीनश्च म्लेच्छ इत्यभिधीयते ॥ अर्थात्-जो गो-मास भक्षण करता है, बहुत कुछ विरुद्ध बोलता है और सर्व धर्माचारसे रहित है उसे म्लेच्छ कहते हैं। ___ अब समालोचकजीकी उस सफाईको भी लीजिये, जो आपने उस म्लेच्छोंके आचार-विषयमे पेश की है, और वह आदिपुराणके वे दो श्लोक हैं, जिनमे म्लेच्छखण्डोके उन' म्लेच्छोका उल्लेख किया गया है जिन्हे भरत चक्रवर्तीके सेनापतिने जीतकर उनसे अपने स्वामीके भोग-योग्य कन्यादि रत्नोका ग्रहण किया था .
इत्युपायैरुपायज्ञ' साधयन्म्लेच्छभूभुज । तेभ्यः कन्यादिरत्नानि प्रभो ग्यान्युपाहरत् ।।१४१ धर्म-कर्म बहिर्भूता इत्यमी म्लेच्छका मता. । अन्यथान्यैः समाचारैरार्यावर्तेन ते समाः ॥१४२ इन पद्योमेसे पहले पद्यमे तो म्लेक्छ राजाओको जीतने और