________________
विवाह-क्षेत्र-प्रकाश
१५९ होते हैं जो उनमे नही हैं और इसलिए वे धर्म-कर्मसे बहिर्भूत करार दिये गये हैं ? जान पडता है यह सब समालोचकजीकी विलक्षण समझका परिणाम है, जो आप उन्हे म्लेच्छ भी मानते हैं, धर्म-कर्मसे बहिर्भूत भी बतलाते हैं और फिर यह भी कहते हैं कि वे हिंसा तथा मासभक्षणादिकसे अलिप्त है-उनमे ऐसे पापो तथा कदाचरणोकी प्रवृत्ति ही नही । समालोचकजीकी इस समझपर एक फार्सी कविका यह वाक्य बिलकुल चरितार्थ होता है -
"बरी अक्लोदानिश ब-बायद गरीस्त ।" अर्थात्-ऐसी बुद्धि और समझपर रोना चाहिये।
आप लिखते हैं “यदि वे ( म्लेच्छ ) नीच होते तो 'उनके अन्य सब आचरण आर्यखण्डके समान होते हैं। ऐसा आचार्य कभी नही लिखते ।" परन्तु खेद हैं आपने यह समझनेकी जरा भी कोशिश नही की कि वे आचरण कौन-से हैं और उनकी समानतासे क्या वह नीचता दूर हो सकती है। इसी देशमै भी जिन्हे आप नीच' समझते हैं उनके कुछ आचरणोको छोडकर शेप सव आचरण ऊँच-से-ऊँच कहलानेवाली जातियोके समान हैं, तव क्या इस समानतापरसे ही वे ऊँच हो गये और आप उन्हे माननेके लिये तैयार है ? यदि समानताका ऐसा नियम हो तब तो फिर कोई भी नीच नही रह सकता और श्रीविद्यानन्दाचार्यने गलतीकी जो म्लेच्छोके नीच-गोत्रादिका उदय बतला दिया । परन्तु ऐसा नहीं है, वास्तवमे ऊँचता और नीचता खास-खास गुण-दोषोपर अवलम्बित होती है-दूसरे आचरणोकी समानतासे उसपर प्राय कोई असर नही पडता।
लेखकने, यद्यपि अपने लेखमे यह कही नही लिखा था कि 'जरा नीच' थी,' जैसा कि समालोचकजीने अपने पाठकोको