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युगवीर-निवन्धावली यशःकीति भट्टारकके बनाये हुए अपभ्रशभाषात्मक प्राकृत हरिवशपुराणमे यही प्रश्नोत्तर इस प्रकारसे दिया हुआ है --~
रिउसपण्णी काइ करेसमि । हउसो गम्भु का सुयउ देसमि। सोलाउहु णिउ हउ साविच्छिहिं ।
सो गंदणु महु आणिवि दिजहि । अर्थात्-- ( ऋषिदत्ताने पूछा ) मैं ऋतुसम्पन्ना हूँ, यदि मेरे गर्भ रह गया तो मैं क्या करूँगी और उस पुत्रको किसे दूँगी ? ( उत्तरमे शीलायुधने कहा ) मैं श्रावस्ती ( नगरी ) मे शोलायुव ( नामका ) राजा हूँ सो यह पुत्र तुम मुझे आकर दे देना।
इसके बाद लिखा है कि 'राजा अपने नगर चला गया और ऋषिदत्ताने वह सव वृत्तात अपने माता-पितासे कह दिया।' यथा---
यस कहेवि सो गउ णिय णयरहो।
थिउ वित्तंतु कहिउ तिणि पियरहो ॥ इस प्रश्नोत्तरसे, यद्यपि, यह बात और भी साफ जाहिर होती है कि ऋषिदत्ता और शीलायुधका आपसमे विवाह नही हुआ था, किन्तु भोग हुआ था और उस भोगसे उत्पन्न होनेवाले पुत्रका ही इस प्रश्नोत्तर-द्वारा निपटारा किया गया है कि उसका क्या बनेगा। अन्यथा-विवाहकी हालतमे-ऐसे विलक्षण प्रश्नोत्तरका अवतार ही नही बन सकता। परन्तु इस प्रश्नोत्तरसे ठीक पहले शीलायुधके तापसाश्रममै जाने आदिका जो वर्णन दिया है उसमे 'विवाहिय' पद खटकता है और वह वर्णन इस प्रकार हैं --
सीछाउहणरवइ तहिं पत्तउ । वनकीलइ सो ताए विदिद्विउ ।