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विवाह-क्षेत्र-प्रकाश
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खयाल नहीं हुआ कि जिस धोखादेहीका मैं दूसरोपर झूठा इलजाम लगा रहा हूँ उसका अपनी इस कृतिसे स्वय ही सचमुच अपराधी बना जा रहा हूँ और इसलिये मुझे अपने पाठकोके सामने 'उसी हरिवंशपुराण'' या जिनसेन के नामपर ऐसी मिथ्या वातको रखते हुए शर्म आनी चाहिये । परन्तु जान पडता है, समालोचकजी सत्य अथवा असलियतपर पर्दा डालनेकी धुनमे इतने मस्त थे कि उन्होने शर्म और सद्विचारको उठाकर एकदम वालाए-ताक रख दिया था, और इसीसे वे ऐसा दुःसाहस कर सके हैं।
हम समालोचकजीसे पूछते हैं कि, आपने तो प० गजाधरलालजीके भापा किये हुए हरिवशपुराणके सभी पत्रोको खूब उलट-पलट कर देखा है तब आपको उसके ३६५ वे पृष्ठपर ये पक्तियाँ भी जरूर देखनेको मिली होगी, जिनमे नवजात बालक कृष्णको मथुरासे बाहर लेजाते समय वसुदेवजी और कसके बदी पिता राजा उग्रसेनमे हुई वार्तालापका उल्लेख है - ___ "पूज्य | इस रहस्यका किसीको भी पता न लगे, इस देवकीके पुत्रसे नियमसे आप बधनसे मुक्त होगे। उत्तरमे उग्रसेनने कहा—अहा । यह मेरे भाई देवसेनकी पुत्री देवकीका पुत्र है । मैं इसकी बात किसीको नही कह सकता। मेरी अतरग कामना है कि यह दिनोदिन बढे और वैरीको इसका पता तक न लगे।"
इस उल्लेख द्वारा यह स्पष्ट घोषणा की गई है कि 'देवकी' उन देवसेनकी पुत्री थी जो कसके पिता उग्रसेनके भाई थे और इसलिये उनसेनकी पुत्री होनेसे देवकी और वसुदेवमे जो चचाभतीजीका सम्बध घटित होता है वही देवसेनकी पुत्री होनेसे भी
१. देखो, समालोचनाका पृष्ठ ३ रा और ६ ठा।