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विवाह-क्षेत्र-प्रकाश
जाती'-कंस देवकीका सहोदर ( सगा भाई ) था, उसके घरपर देवकीके किसी अहितकी आशकाके लिये वसुदेवके पास कोई कारण नही था, जिससे वे किसी प्रकार उसकी प्रार्थनाको अस्वीकार करनेके लिये बाध्य हो सकते, और इसलिये उन्होने खुशीसे कंसकी प्रार्थनाको स्वीकार करके उसे वचन दे दिया।
यह सब कथन जिनसेनाचार्यके हरिवशपुराणसे लिया गया है। इस प्रकरणके कुछ प्रयोजनीय पद्य प० दौलतरामजीकी भापा-टीका सहित इस प्रकार है -
वसुदेवोपकारेण हृतः प्रत्युपकारधीः ।. न वेत्ति कि करोमीति किंकरत्वमुपागतः ॥ २८ ॥ अभ्यर्थ्य गुरुमानीय मथुरां पृथुभक्तितः। स्वसारं प्रददौ तस्मै देवकी गुरुदक्षिणाम् ॥ २९ ॥ टीका-"कस मथुराका राज पाय अर विचारी यह सब उपगार वसुदेवका है। सो मैं हू याकी कुछ सेवा करूँ ॥२८॥ तब प्रार्थना करि वसुदेव कू महाभक्तिते (सू) मथुराविप लाया अर अपनी बहन देवकी वसुदेवकू परनाई ॥२६॥"
"जातुचिन्मुनिवेलायामतिमुक्तकमागतम् । कसज्येष्ठं मुनि नत्वा पुरः स्थित्वा सविभ्रमम् ॥ ३२ ॥ हसती नर्मभावेन जगौ जीवद्यशा इति ।
आनन्दवस्त्रमेतत्ते देवक्या. स्वसुरीक्षताम् ॥ ३३ ।। टीका-"एक दिन आहारके समै कसके बडे भाई अतिमुक्तक नामा मुनि कसके घर आहारकू आए ॥ ३२ ॥ तब नमस्कार करि जीवयशा चचल भावकरि हँसती थकी देवकीके रजस्वलापनेके वस्त्र स्वामीके समीप डारे अर कहती भई। ए तिहारी वहनके आनन्दके वस्त्र हैं सो देषहु ॥ ३३ ॥"