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विवाह-क्षेत्र प्रकाश
१२५ देवसेनकी पुत्री अपनी छोटी बहन देवकी ( देवसेनसुता निजा अनुजा देवकी ) वसुदेवको प्रदान की, इसका स्पष्ट अर्थ यही होता है कि कसने अपने चचा देवसेनकी पुत्री देवकी वसुदेवसे ब्याही । भावनगरकी एक पुरानी जीर्ण प्रतिमे, प्रथम पद्यमे आए हुए 'देवसेन' नामपर टिप्पणी देते हुए, लिखा है
"उनसेन-देवसेनमहासेनास्त्रयो नरवृष्णे पुत्रा ज्ञातव्या " अर्थात्-उग्रसेन, देवसेन और महासेन ये तीन नरवृष्णि' ( भोजकवृष्टि ) के पुत्र जानने चाहिये । इससे उक्त अर्थका और भी ज्यादा समर्थन हो जाता है और किसी सदेहको स्थान नही रहता। अस्तु, यह देवसेन मृगावती देशके अन्तर्गत दशार्णपुरके राजा थे, 'धनदेवी' इनकी स्त्री थी और इसी धनदेवीसे देवकी उत्पन्न हुई थी, ऐसा उत्तरपुराणके निम्नवाक्यसे प्रकट है -
मृगावत्याख्यविषये दशार्णपुरभूपते । देवसेनस्य चोत्पन्ना धनदेव्याश्च देवको ।
७१ वॉ पर्व । और इसलिये ब्रह्मनेमिदत्तके नेमिपुराण, जिनदास ब्रह्मचारीके हरिवशपुराण, भट्टारक शुभचन्द्रके पाण्डवपुराण और भ० यश कीर्तिके प्राकृत हरिवशपुराणमे देवकीके पिता, धनदेवीके
इति तद्वचन श्रुत्वा मजूषान्तस्थपत्रक । गृहीत्वा वाचियित्वोच्चैस्ग्रसेनमहीपते ॥३६५ ॥ पद्मावत्याश्च पुत्रोयमिति ज्ञात्वा महीपति । विततार सुता तस्मै राज्याधं च प्रतुष्टवान् ॥ ३६६ ।। सोऽप्युत्पत्तिमात्रेण स्वस्य नद्या विसर्जनात् ।
--उत्तरपुराण, ७० वॉ पर्व । १ उत्तरपुराणमें भोजकवृष्टि ( वृष्णि ) की जगह नरवृष्णि या नरवृष्टि ऐसा नाम दिया है।