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विवाह - क्षेत्र- प्रकाश
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पैदा होते ही उसे नदीमे बहा दिया -- वडा क्रोध आया और इसलिए उसने जरासंधसे मथुराका राज्य मांगकर सेना आदि साथ ले मथुराको जा घेरा । और वहाँ पिताको युद्धमे जीतकर बाँध लिया तथा अपना बदी बनाकर उसे मथुराके द्वारपर रक्खा । इस पिछली वातको जिनसेनाचार्यने नीचे लिखे तीन पद्योमे जाहिर किया है
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सद्योजात पिता नद्या मुक्तवानिति च क्रुधा । वरीत्वा मथुरां लब्ध्वा सर्वसाधनसगतः ॥ २९ ॥ कस. कालिन्दसेनाया. सुतया सह निर्घृण । गत्वा युद्धे विनिर्जित्य बबन्ध पितर हृत || २६ ॥ महोप्रो भग्नसंचार उग्रसेन निगृह्य सः । अतिष्ठिपत्कनिष्ठः स स्वपुरद्वारगोचरे ॥ २७ ॥ -- हरिवशपुराण, २३वॉ सर्ग ।
इसके बाद कंसने सोचा कि यह सव ( जीवद्यशासे विवाहका होना और मथुराका राज्य पाना ) वसुदेवका उपकार है, मुझे भी उनके साथ कुछ प्रत्युपकार करना चाहिये और इसलिये उसने प्रार्थना - पूर्वक अपने गुरु वसुदेवको बडी भक्ति के साथ मथुरामे लाकर उन्हे गुरुदक्षिणा के तौरपर अपनी बहन 'देवकी' प्रदान की— अर्थात्, अपनी वहन देवकीका उनके साथ विवाह कर दिया ।
विवाहके पश्चात् वसुदेवजी कंसके अनुरोध से देवकीसहित मथुरामै रहने लगे । एक दिन कसके बडे भाई 'अतिमुक्तक' मुनि '
१ ये 'अतिमुक्तक' मुनि राजा उग्रसेनके वडे पुत्र थे और पिताके साथ किये हुए कसके व्यवहारको देखकर ससारसे विरक्त हो गये थे, ऐसा