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युगवीर-निवन्धावली
रीति-रिवाज अथवा घटना-विशेषको लेकर पवित्र धर्मसे भी घृणा कर बैठे, उनमे बडे-बडे समझदार तथा न्याय-निपुण लोग मौजूद हैं और प्राचीन इतिहासकी खोजका प्राय सारा काम उन्हीकेद्वारा हो रहा है। उनमे भी यह सब हवा निकली हुई है और वे खूब समझते हैं कि पहले जमानेमे विवाह-विषयक क्या, कुछ नियम-उपनियम थे और उनकी शकल बदलकर अब क्या-से-क्या हो गई है। और यदि यह मान लिया जाय कि उनमे भी आपजैसी समझके कुछ लोग मौजूद हैं तो क्या उनके लिये उनकी नि सार कहा-सुनीके भयसे--सत्यको छोड दिया जाय ? सत्यपर पर्दा डाल दिया जाय ? अथवाउ से असत्य कह डालनेकी धृष्टता की जाय ? यह कहाँका न्याय है ? क्या यही आपका धर्म है ? ऐसी ही सत्यवादिताके आप प्रेमी है ? और उसीका आपने अपनी समालोचनामे ढोल पीटा है ? महाराज | सत्य इस प्रकार छिपायेसे नही छिप सकता, उसपर पर्दा डालना व्यर्थ है, आप जैनधर्मकी चिन्ता छोडिये और अपने हृदयका सुधार कीजिये । जैनधर्म किसी रीति-रिवाजके आश्रित नहीं है-वह अपने अटलसिद्धान्तोऔर अनेकान्तात्मक स्वरूपको लिये हुए वस्तु-तत्त्वपर स्थित है-उसे कृपया अपने रीति-रिवाजोकी दलदलमे मत घसीटिये, उसपरसे अपनी कुत्सित प्रवृत्तियो और सकीर्ण विचारोका आवरण हटाकर लोगोको उसके नग्नस्वरूपका दर्शन होने दीजिये, फिर किसीकी ताव नही कि कोई उसे घृणाकी दृष्टिसे अवलोकन कर सके।
और इस देवकी-वसुदेवके सम्वन्धपर ही आप इतने क्यो उद्विग्न होते हैं ? यह चचा-भतीजीका सम्बन्ध तो कई पीढियोको लिये हुए है-देवकी वसुदेवकी सगी भतीजी नही थी, सगी