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विवाह-क्षेत्र प्रकाश
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सादा आशय सिर्फ इतना ही होता है कि 'वह धाय ( रेवती) मनुष्य जन्मको प्राप्त हुई, इस समय भद्रिलसा नामक नगरमे सेठ सुदृष्टिकी अलका नामकी स्त्री है ।' और यह आशय उक्त अनुवादके अन्तिम वाक्यमे आ जाता है, इसलिये अनुवादका शेपाश, जिसमे समालोचकजीका बडे दर्पके साथ प्रदर्शित किया हुआ वह वाक्य भी शामिल है, मूलग्रन्थसे बाहरकी चीज जान पडता है । मूलग्रन्यमे, इस श्लोकसे पहले या पीछे, दूसरा कोई भी श्लोक ऐसा नही पाया जाता, जिसका आशय ‘रानी नन्दयशा' से प्रारम्भ होनेवाला उक्त वाक्य हो सके । इस श्लोकसे पहले "कुर्वन्निर्नामकस्तीबं" नामका पद्य और बादको 'गगाद्या देवकीगर्ने' नामका पद्य पाया जाता है, जिन दोनोका अनुवाद, इसी क्रमसे—उक्त अनुवादसे पहले पीछे-प्राय ठीक किया गया है। परन्तु उक्त पद्यके अनुवादमे बहुत-सी बातें ऊपरसे मिलाई गई हैं, यह स्पष्ट है, और इस प्रकारको मिलावट और भी सैकडो पद्योके अनुवादमे पाई जाती है । जो न्यायतीर्थ प० गजाधरलालजी, प० दौलतरामजीकी भाषा-टीकापर आक्षेप करते हैं वे स्वय भी ऐसा गलत अथवा मिलावटको लिये हुए अनुवाद प्रस्तुत कर सकते हैं, यह बडे ही खेदका विषय है। प० दौलतरामजीने तो अपनी भाषा-वचनिकामे इतना ही लिखा है कि "राणी नदियसाका जीव यह देवकी भई" और वह भी उक्त पद्यकी टीकामे नही, वल्कि अगले पद्यकी टीकामे वहाँ उल्लेखित 'देवकी' का पूर्व सम्बध
१ देखो, देहलीके नये मदिर और पचायती मदिरके हरिवशपुराणकी दोनों प्रतियोंके क्रमशः पत्र न० २०७ और १५१ ।
२ देखो, गजाधरलालजीके भाषा-हरिवशपुराणकी 'प्रस्तावना' पृष्ठ न० २।