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विवाह-क्षेत्र-प्रकाश
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कोश' 'मे लिखा है कि 'पंचसुगंधिनी' वेश्याकी 'किन्नरी' और 'मनोहरी' नामकी दो पुत्रियाँ थी, जिनके साथ जयधरके पुत्र प्रतापधर अपरनाम 'नागकुमार' ने, पिताकी आज्ञासे, विवाह किया था । ये नागकुमार जिनपूजन किया करते थे, उन्होने अन्तको जिनदीक्षा ली और वे केवलज्ञानी होकर मोक्ष पधारे । उनकी इस कृतिसे—साक्षात् व्यभिचारजात वेश्या-पुत्रियोको अपनी स्त्री बना लेनेसे-जैनधर्मको कोई कलक नही लगा, जिसके लग जानेकी समालोचकजीने समालोचनाके अन्तम आशका की है, वे वरावर जिन-पूजा करते रहे और उससे उनकी जिनदीक्षा तथा आत्मोन्नतिको चरम सीमा तक पहुँचानेके कार्यमे भी कोई बाधा नही आ सकी। इसलिए एक वेश्याको स्त्री वना लेना आजकलकी दृष्टिसे भले ही लोक-विरुद्ध हो, परन्तु वह जैनधर्मके सर्वथा विरुद्ध नही कहला सकता और न पहले जमानेमे सर्वथा लोक-विरुद्ध ही समझा जाता था। आजकल भी वहुधा देशहितैपियोकी यह धारणा पाई जाती है कि भारतकी सभी वेश्याएँ,
१. यह पुण्यास्रवकथाकोश केशवनन्दि मुनिके शिष्य रामचन्द्र मुमुक्षुका वनाया हुआ है । इसका भापानुवाद प० नाथूरामजी प्रेमीने किया है और वह सन् १९०७ में प्रकाशित भी हो चुका है।
२. यथा-"एकदा राजास्थान पचसुगंधिनीनामवेश्या समागत्य भूप विज्ञापयतिस्म देव । मे सुते द्वे किन्नरी मनोहरी च वीणावाधमदगविते नागकुमारस्यादेशं देहि तयोर्वाद्य परीक्षितु । .. ते चात्यासक्त पितृवचनेन परिणीतवान् प्रतापधर सुखमास ।"-पुण्यास्रव० ।
३. ".. प्रतापधरो मुनिश्चतुःषष्टिवर्षाणि तपश्चकार कैलासे केवली यज्ञे।"-पुण्यास्रव ।
अर्थात्-प्रतापधर (नागकुमार ) ने मुनि होकर ६४ वर्प तप किया और फिर कैलास पर्वतपर केवलज्ञानको प्राप्त किया ।