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विवाह-क्षेत्र-प्रकाश देवकी और वसुदेवके पूर्वोत्तर सम्वन्धोको निम्न प्रकारसे घोपित किया गया --
"वसुदेवका अपने बाबाके भाई राजा सुवीरकी (पड) पोती कंसकी बहन देवकोसे विवाह हुआ।"
इस घोषणाके किसी भी अशपर उस समय आपत्तिकी कहीसें भी कोई आवाज नही सुन पडी।
(२) १७ फरवरी सन् १६१३ के जैनगजटमे सरनऊ निवासी प० रघुनाथदासजीने, "शास्त्रानुकूल प्रवर्तना चाहिये" इस शीर्षकका एक लेख लिखा था और उसमे कुछ रूढियोपर अपने विचार भी प्रगट किये थे। इसपर लेखककी ओरसे "शुभ चिह्न' नामका एक लेख लिखा गया और वह २४ मार्च सन् १६१३ के 'जनमित्र' में प्रकाशित हुआ, इस लेखमे पडितजीके उक्त 'शास्त्रानुकूल प्रवर्तना चाहिये' वाक्यका अभिनदन करते हुए और समाजमे रूढियो तथा रस्म-रिवाजोका विवेचन प्रारम्भ होनेकी आवश्यकता बतलाते हुए, कुछ शास्त्रीय प्रमाण पडितजीको भेट किये गये थे और उनपर निष्पक्षभावसे विचारनेकी प्रेरणा भी की गई थी। उन प्रमाणोमे चौथे नम्बरका प्रमाण इस प्रकार था -
"उक्त ( जिनसेनाचार्यकृत ) हरिवशपुराणमे यह भी लिखा है कि वसुदेवजीका विवाह देवकीसे हुआ । देवकी राजा उग्रसेनकी लडकी और महाराज सुवीरकी पड़पोती (प्रपौत्री) थी और वसुदेवजी महाराजा सूरके पोते थे। सूर और सुवीर दोनो सगे भाई थे—अर्थात् श्रीनेमिनाथके चचा वसुदेवजीने अपने चचाजाद भाईकी लडकीसे विवाह किया। इससे प्रकट