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विवाह-क्षेत्र-प्रकाश
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कर वह चारुदत्तके घरपर जाकर रही और उसको मातादिककी सेवा करती हुई चारुदत्तके आगमनकी प्रतीक्षा करने लगी। साथ ही, उसने एक आर्यिकासे श्रावकके व्रत लेकर इस बातकी और भी रजिष्ट्री कर दी कि वह एक पतिव्रता है और भविष्यमे वेश्यावृत्ति करना नही चाहती। इसके बाद चारुदत्तजी विदेशसे विपुल धन-सम्पत्तिके साथ वापस आए और वसन्तसेनाके अपने घरपर रहने आदिका सव हाल मालूम करके उससे मिले और उन्होने उसे बडी खुशीके साथ अपनाया-स्वीकार किया। परन्तु यह सब कुछ मानते हुए भी, आपका कहना है कि इस अपनाने या स्वीकार करनेका यह अर्थ नही है कि चारुदत्तने वसन्तसेनाको स्त्रीरूपसे स्वीकृत किया था या घरमे डाल लिया था बल्कि कुछ दूसरा ही अर्थ है, और उसे आपने निम्न दो वाक्यो द्वारा सूचित किया है -
(१) "चारुदत्तने उपकारी और व्रतधारण करनेवाली समझ कर ही वसन्तसेनाको अपनाया था।"
(२) "असल बात यह है कि वसन्तसेना सेवा-शुश्रूपा करनेके लिये आई थी, और चारुदत्तने उसे इसी रूपमे अपना लिया था।" ___इनमे पहले वाक्यसे तो अपनानेका कोई विसदृश अर्थ स्पष्ट नही होता है। हाँ, दूसरे वाक्यसे इतना जरूर मालूम होता है कि आपने वसन्तसेनाको स्त्रीसे भिन्न सेवा-शुश्रूपा करनेवालीके रूपमे अपनानेका विधान किया है अथवा यह प्रतिपादन किया है कि चारुदत्तने उसे एक खिदमतगारनी या नौकरनीके तौरपर अपने यहाँ रक्खा था। परन्तु रोटी बनाने, पानी भरने, वर्तन माजने, बुहारी देने, तैलादि मर्दन करने, नहलाने, बच्चोको