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कांचनस्वभावमुपेत्यानुभूयमानतायामभूतार्थं तथात्मनो ज्ञानदर्शनादिपर्यायेणानुभूयमानतायां विशेषत्वं भूतार्थमपि प्रत्यस्त 5 मित समस्त विशेषमात्मस्वभावमुपेत्यानुभूयमानतायामभूतार्थ । यथा बापां सप्तार्चिः प्रत्ययोष्णसमाहितत्वपर्यायेणानुभूयमान
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तायां संयुक्तत्वं भूतार्थमप्येकांततः शीतस्वभावमुपेत्यानुभूयमानतायामभूतार्थं तथात्मनः कर्मप्रत्ययमोहसमाहितत्त्वपर्यायेणानुभूयमानतायां संयुक्तत्वं भूतार्थमप्येकांततः स्वयंवोधवीजस्वभावमुपेत्यानुभूयमानतायामभूतार्थं ।
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अर्थ -- जो नय आत्मा अबद्धस्पृष्ट कहिये बंध्या अर स्पर्शा नाहीं, बहुरि अनन्य कहिये अन्य नाहीं, बहुरि नियत कहिये चलाचल नाहीं, बहुरि अविशेष कहिये जानें विशेष नाहीं, बहुरि 5 असंयुक्त कहिये अन्यके संयोगरहित ऐसा पांच भावरूप अवलोकन करै, ताहि हे शिष्य तू शुद्धन्य जाणि ।
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टीका--जो खलु कहिये निश्चयतें अबद्ध, अस्पृष्ट, अनन्य, नियत, अविशेष, असंयुक्त, ऐसी 5 5 आत्माकी अनुभूति कहिये अनुभवन सोही शुद्धनय है । सो यह अनुभूति निश्वयतें आत्माही है । ऐसें आत्मा ही एक प्रकाशमान है। 卐
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भावार्थ- शुद्धय कहो तथा आत्माकी अनुभूति कहो तथा आत्मा कहो एकही है, न्यारा
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कछू नाहीं है । इहां शिष्य पूछे है, जो जैसा कया तैसें आत्माकी अनुभूति इन पांच भावनिमें 5 कैसी है ? ताका समाधान करे हैं। जो, बद्धस्पृष्टत्व आदि पांच भाव हैं तिनिकै अभूतार्थपणा है, असत्यार्थपणा है, तातैं शुद्धनयही आत्माकी अनुभूति है सोही दृष्टान्तकरि प्रगट दिखावे हैं। जैसें बिसिनी कहिये कमलिनी ताका पत्र जलमें डुब्या होय ताके जलके स्पर्शनेरूप अवस्थाकरि अनु- फ 15 भवन करते सन्ते जलका स्पर्शनपणा भूतार्थ है सत्यार्थ है । तौऊ एकान्ततें जल के स्पर्शनेयोग्य नाहीं, ऐसा कमलिनीका पत्रका स्वभावकूं लेकरि अनुभवन करते सन्ते जलका स्पर्शनपणा अभूतार्थ 5 है असत्यार्थ है, तैसें आत्माकूं अनादिपुद्गलकर्मतें वद्धस्पर्शपणाकी अवस्थाकरि अनुभवन करते सन्ते 卐 कद्वस्पृष्टपणा भूतार्थ है सत्यार्थ है । तौ एकान्ततें पुहलके स्पर्शनेयोग्य नाहीं ऐसा आत्मस्वभावकू 5 लेकरि अनुभवन करते सन्ते बद्धस्पृष्टपणा अभूतार्थ है असत्यार्थ है ।
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