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1 उपजता संता है, ताकू अपने स्वभावकरि जाने है, ऐसा व्यवहार कोजिये है। ऐसा तो ज्ञानका प卐 व्यवहार है।
बहुरि दर्शनगुणका व्यवहार कहे हैं-जैसे सोही सेटिका श्वेतगुणकरि भरथा है स्वभाव । मजाका ऐसा है, सो आप स्वयं कुटयादि परद्रव्यके स्वभावकरि तौ न परिणमती संतो है; अर .- कुट्यादि परद्रव्यकू अपने स्वभावकरि नाहीं परिणमावती संती है; अर कुट्यादि परद्रव्य है निमित्त "
जाकू ऐसा श्वेतगुणकरि भरथा अपना स्वभाव, ताका परिणामकार उपजती संती है। सोम जकुट्यादि परद्रव्य, सेटिका है निमित्त जाकू ऐसा अपना स्वभावका परिणामकार उपजता संता... " है; ताकू अपने स्वभावकरि सुख्द करे है; ऐसा व्यवहार कोजिये है । तैसें चेतयिता है सो दर्शनक 卐 गुणकरि भरथा है स्वभाव जाका ऐसा है। सो स्वयं आप तौ पुद्गल आदि परद्रव्यका स्वभाव
करि न परिणमता संता है। बहुरि पुद्गल आदि परद्रव्यकू अपने स्वभावकरि नाहीं परिणमावता ।। संता है । अर पुद्गल आदि परद्रव्य है निमित्त जाकू ऐसा अपना दर्शनगुणकरि भरथा स्वभावका परिणाम ताकरि उपजता संता है। सो पुद्गल आदि पाव्यत चेतयिता है निमित्त जाकू ऐसा
अपना स्वभावका परिणामकारे उपजता संताकू अपना स्वभावकरि देखे है, ऐसा व्यवहार॥ 4 कीजिये है। ऐसा दर्शनगुणका व्यवहार है।
अब चारित्रका व्यवहार कहै हैं-जैसें सो ही सेटिका श्वेतगुणकरि भरथा है स्वभाव जाका " 卐 ऐसी है, सो आप स्वयं कुट्यादि परद्रव्यके स्वभावकरि न परिणमती संती है, बहुरि कुट्यादि . परद्रव्यकू अपने स्वभावकरि नाहीं परिणमावती संती है, अर कुट्यादि परद्रव्य है निमित्त जाकू 卐 ऐसा श्वेतगुणकरि भर्या अपना स्वभाव ताका परिणामकरि उपजती संती है; सो कुट्यादि .. परद्रव्यकू सेटिका है निमित्त जाकूऐसा अपना स्वभावका परिणामकरि उपजै ताकू सेटिका + अपने स्वभावकरि श्वेत कर है । ऐसा व्यवहार कीजिये है। तैसे घेतयिता आत्मा भी ज्ञानदर्शक 1नगुणकरि भरचा परके अपोहन कहिये त्याग, तिस रूप स्वभाव है, सो स्वयं आप पुद्गलादि पर
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