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"संयम है, ज्ञान ही अंगपूर्वगत सूत्र है, धर्म अधर्म भी ज्ञान ही है, बहुरि प्रवज्या दीक्षा है सो 卐भी ज्ञान है । ज्ञानी जन हैं ते ऐसे अंगीकार करे हैं माने हैं। .. टीका--श्रुत कहिये वचनात्मक द्रव्यश्रुत है सो ज्ञान नाहीं है । जाते वचन है सो अचेतन
है। सातें ज्ञानके अर श्रुतके व्यतिरेक है भेद है । बहरि शब्द है सो ज्ञान नाहीं है । जाते शब्द पुद्गलद्रव्यका पर्याय है अचेतन है, तातें ज्ञानके अर शब्दके व्यतिरेक है । बहुरि रूप है सो ज्ञान "नाहीं है। जाते रूप पुद्गलका गुण है अचेतन है, तातें रूपके अर ज्ञानके व्यतिरेक है । बहुरि प्रवर्ण है सो ज्ञान नाहीं है । जारौं वर्ण पुद्गलद्रव्यका गुण है, अचेतन है, तातें वर्ण के अर ज्ञानके ___व्यतिरेक है। बहुरि गंध हं सो ज्ञान नाहीं है । जातें गंध पुद्गलद्रव्यका गुण है, अचेतन है, जतातें गंधके अर ज्ञानके व्यतिरेक है। बहुरि रस है सो ज्ञान नाहीं है। जाते रस 卐 ..पुद्गलद्रव्यका गुण है अचेतन है, तातें रसके अर ज्ञानके व्यतिरेक है। बहुरि स्पर्श है सो
ज्ञान नाहीं है । जाते स्पर्श पुद्गलद्रव्यका गुण हे अचतन है, तातें स्पर्शक अर ज्ञानके व्यतिरेक है। बहुरि कर्म है सो ज्ञान नाहीं है । जातें कर्म अचेतन है, तातें कर्मके अर ज्ञानके व्यतिरेक "है। बहरि धर्मद्रव्य है सो ज्ञान नाहीं है। जाते धर्म अचेतन है तातें धर्मद्रव्यके अर
ज्ञानके व्यतिरेक है । वहुरि अधर्मद्रव्य है सो ज्ञान नाहीं है । जाते अधर्म अचेतन है, तातें + "अधर्मद्रव्यके अर ज्ञानके व्यतिरेक है । बहुरि कालद्रव्य है सो ज्ञान नाहीं है । जाते काल अचेतन है, जताते कालके अर ज्ञानके व्यतिरेक है । बहुरि आकाशद्रव्य है सो ज्ञान नाहीं है। जाते आकाश ...अचेतन है । तातें ज्ञानके अर आकाशके व्यतिरेक है। बहुरि अध्यवसान है सो ज्ञान नाहीं है। +जातें अव्यवसान अचेतन है । तातें ज्ञानके कर्मके उदयकी प्रवृत्तिरूप अध्यवसानके व्यतिरेक है।
ऐसें याप्रकार तो ज्ञानके सर्व ही परद्रव्यनिकरि सहित व्यतिरेक भिन्नपणाका निश्चय साध्या हुवा
देखना । अर अब कहे हैं, जो जीव है सो ही एक ज्ञान है जातें जीव घेतन है, ताते ज्ञानके अर अजीवके अव्यतिरेक है अभेद है । बहुरि जीवके आपैआप ज्ञानपणा है । ज्ञानजीवके व्यतिरेक भेव ॥
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