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प्रतिपक्षी कर्म न रहै । कैसा अवस्थित भया है ? अन्य जे परद्रव्य तिनितें व्यतिरिक्त कहिये "न्यारा अवस्थित भया है। बहुरि कैसा है ? आत्मनियतं कहिये आपहीविर्षे निश्चित है। बहुरि + कैसा है ? पृथक् कहिये न्यारा ही वस्तुपणाकू धारता संता है । वस्तूका स्वरूप सामान्यविशेषा
स्मक है, सो ज्ञान भी सामान्यविशेषपणाधारथा है । बहुरि कैसा है ? आदानोज्झन कहिये 卐ग्रहणत्याग तिनि करि शून्य है रहित है। ज्ञान में किछू त्याग ग्रहण नाहीं है। बहुरि कैसा है ? ' -अमल कहिये रागादिक मलते रहित है ऐसा है । बहुरि याका महिमा नित्य उदयरूप तिष्ठे है
सो कैसा है ? मध्य अर आदि अर अंत जे विभाग तिनिकरि मुक्त कहिये रहित, अर सहज कहिये स्वाभाविक, अर स्फार कहिये फैल्या बिस्तरथा जो प्रभा कहिये प्रकाश ताकरि दैदीप्य"मान है । बहुरि शुद्रज्ञानशा न कहिये समूह है ऐसा जाका महिमा सदा उदयमान है। तैसें । म अवस्थित भया है ठहरया है।
. भावार्थ-ज्ञानका पूर्णरूप सर्व जानना है । सो जब यह प्रकट होय है तब तिनि विशेष- । जगनिसहित प्रकट होय है । सो याकी महिमा कोई विगाडि सके नाहीं सदा उदयमान रहे है। म .. अब कहे हैं, ऐसे ज्ञानस्वरूप आत्माका धारणा सो ही कृतकृत्यपणा है।
उपजातिछन्दः . उन्मुक्त मु मोफयमशेषतस्तत्तथानमादयमशेषतस्तत् । यदात्मनः संहृतसर्वशक्त: पूर्णस्य सन्धारणमात्मनीह ॥४३॥ .. - अर्थ-जो समेटी है सर्व शक्ति जानें ऐसा जो पूर्णस्वरूप आत्मा, ताका आत्मा ही विष ।
धारण करना सो ही जो उन्मोच्य कहिये छोडनेयोग्य था, सो तो सर्व उन्मुक्त कहिले छोडया । म "अर जो आदेय कहिये लेने योग्य था, सो समस्त लिया। 卐 भावार्थ-जो पूर्णज्ञान स्वरूप सर्वशक्तिका समूहस्वरूप आत्मा, ताक् धारणा सो ही त्यागने- 卐५८. . योग्य तो सर्व ही त्यागा । अर ग्रहण करनेयोग्य था सो ग्रहण कीया। यह ही कृतकृत्यपणा है। -
आगे कहे हैं, जो ऐसे ज्ञानके देह भी नाही है। साकी सूचनिकाका श्लोक है ।
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