Book Title: Samayprabhrut
Author(s): Kundkundacharya, 
Publisher: Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi

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Page 657
________________ if $ $$ 五 ऊ समंतात् कहिये सर्व तरफ सर्वक्षेत्रकालमैं, ज्वलतु कहिये देदीप्यमान प्रकाशरूप रहौ । कैसा है ? .. अविचलित कहिये निश्चल जो चित् कहिये चेतना सो है स्वरूप जाका ऐसा जो अपना आत्मा, "" ताविर्षे आपहीकरि अपने आरनुपर्दू निरंतर मना हवा धारता संता है। पाया स्वभावकू कबहू नाहीं - छोड़ता है । वहुरि कैसा है ? धस्त कहिये नाशकू प्राप्त भया है मोह जाका अज्ञान अंधकारकू " दूरि कीया है। बहुरि निस्सपत्न कहिये प्रतिपक्षी कर्मकरि रहित ऐसा है स्वभाव जाका । बहुरिम + कैसा है ? निर्मल है अर पूर्ण है। ___ भावार्थ-इहां आत्मा अमृतचंदज्योति कह्या, सो यह लुप्तोपमा अलंकारकरि कह्या जानना। + जाते, अमृतचंद्रवत् ज्योति ऐसा समासविर्षे वत् शब्दका लोप होय है तब अमृतचंद्रज्योति कहिये ।। तथा वत् शब्द न करिये तब अमृतचंद्ररूपज्योति ऐसा कहिये । तब भेदरूपक अलंकार है । तथा। अमृतचन्द्रज्योति ऐसा ही आत्माका नाम कहिये तब अभेदरूपक अलंकार हो है। अर याके 5 विशेषण हैं तिनिकरि चंद्रमा व्यतिरेक भी है। जाते अस्तमोह विशेषण तो अज्ञान अंधकार" " दुरि होना जणावे है। अर निर्मल पूर्ण विशेषण लांछनरहितपणा पूर्णपणा जणावे है। अर) म निःसपत्वस्वभाव विशेषण राहुर्बिवते तथा बादला आदिकरि आच्छादित न होना जणावे है।.. समंतात् ज्वलन है सो सर्वक्षेत्र सर्वकालमें प्रतापरूप प्रकाश करना जणाये है। चंद्रमा ऐसा नाहीं। जबहुरि अमृतचंद्र ऐसा टीकाकार अपने नाम भी जणाया है । बहुरि याका समास पलटिकरिता 1- अर्थ कीजिये तव अनेक अर्थ होय हैं। सो यथासंभव जानने । ऐसे समयसारग्रन्थकी आत्मख्याति नाम टीकाकी वचनिकाविषं सर्वविशुद्धज्ञानका प्रवेश 1- नामा नवमां अधिकार पूर्ण भया ॥९॥ इहां ताई गाथा तौ ४१४ भई । अर काव्य २७५ भये । श्लोकसंख्या १२००० है। सवैया–सुखविशुद्धज्ञानरूप सदा चिदानंद करता न भोगता न परद्रव्यभावको । मूरतअमूरत जे आनद्रव्य लोकमाहि ते भी ज्ञानरूप नाही न्यारे न अभावको ।। 녀

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