Book Title: Samayprabhrut
Author(s): Kundkundacharya, 
Publisher: Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi

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Page 656
________________ + " आये तो प्रथम अवस्थामै वडा अद्भुत दीखे, जो हमने अनादिकाल यौँ ही खोया। यह जिनके 卐 वचन बडे उपकारी है, वस्तूका स्वरूप यथार्य जनावे है । ऐसें आश्चर्यकरि प्रधान करे हैं । आगे.. अपटीकाकार इस सर्व विशुद्धज्ञानका अधिकार पूर्ण करे हैं। ताके अंतमङ्गलके अर्थी इस विश्वमा ४ कारहीकू सर्वोत्कृष्ट कहे हैं। मालिनीछन्दः जयति सहजतेजःपुञ्जमज्जत्रिलोकीस्खलदखिलविकल्पोऽप्येक एव स्वरूपः । स्वरसविसरपूर्णाच्छिन्नतावोपलम्भप्रसभनियमितार्चिश्चिच्चमत्कार एषः ॥२६॥ 卐 अर्थ-यह प्रत्यक्ष अनुभवगोचर चैतन्यचमत्कार है सो जयवंत प्रवर्ते है। काहकरि बाध्या न - जाय ऐसें सर्वोत्कृष्ट होय प्रवर्ते है। कैसा है ? अपना स्वभावस्वरूप जो तेजः प्रकाशका पुज" । ताविर्षे मन होते जे तीन लोकके पदार्थ तिनिकरि होते दीखते हैं अनेक विकल्प भेद जामें ऐसा है। तौऊ एकस्वरूप ही है। भावार्थ-केवलज्ञानमैं सर्व पदार्थ झलके हैं । ते अनेक ज्ञेयाकाररूप दीखे हैं । तोऊ चैतन्यरूप ज्ञानाकारकी दृष्टीमें एक ही स्वरूप है । बहुरि कैसा है ? अपना निज- 卐 रसकरि पूर्ण ऐसा नाही छिद्या है तत्त्वस्वरूपका पावना जाकै। भावार्थ-प्रतिपक्षी कर्मका. अभाव भया तातें नाहीं पाया स्वभावका अभाव जाकै ऐसा है । वहुरि कैसा है ? प्रसभ कहिये। 卐 प्रकट बलात्कारै नियमरूप है दीप्ति जाकी। अपना अनंतवीर्यत निष्कंप तिष्ठे है ऐसा चिच्चम- .. त्कार जयवन्त है । इहां जयवन्त कहने में सर्वोत्कर्षकरि वर्तना कह्या, सो यह ही मंगल है। आगे" टीकाकार अपना नामकू प्रकट करते पूर्वोक्त आत्माहीकू आशीर्वाद करे हैं । __ अविलितचिदात्मन्यात्मनाऽऽत्मानमात्मन्यनवरतनिमग्न धारयत् ध्वस्तमोहम् । उदितममृतचन्द्रज्योतिरेतत्समन्ताज्ज्वलतु विमलपूर्ण निस्सपलस्वभावम् ॥३०॥ अर्थ-यह अमृतचन्दज्योति कहिये जामें मरण नाहीं तथा जाकरि अन्यकै मरण नाहीं सो ... " अमृत, तथा अत्यंत स्वादुरूप मिष्ट होय ताकू लोक रूढिकरि अमृत कहे हैं। ऐसा अमृतमयी जोक चन्द्रमासारिखा ज्योति प्रकाशस्वरूप ज्ञान, प्रकाशरूप आत्मा, सो उदयकू प्राप्त भया । सो यहा। 5 5 5

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