Book Title: Samayprabhrut
Author(s): Kundkundacharya, 
Publisher: Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi

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Page 654
________________ ॐ 99 - कलोल हैं। सो ऐसा भी ज्ञानका स्वरूप है। अर आपकरि आप जानने योग्य है तातें ज्ञेयरूप " भी है । अर आप ही आपकू जाननेवाला है यातें ज्ञाता भी है । ऐसें तीनूं भाववरूरज्ञान एकम है। याहीतें सामान्यविशेषरूप वस्तु कहिये तिसमात्र ही ज्ञानमात्र कहिये है । सो अनुमा करने- .. " वाला ऐसे हो अनुभव करे, जो ऐसा ज्ञानभाव यह में हौं। अब कहे हैं, अनुभवको दशामें , 卐 अनेकरूप दीखे हैं। तोऊ यथार्थज्ञाता निर्मठ ज्ञान भूले नाहीं है। पृष्वोछन्दः कचिल्लसति मेचकं कायमच कामे व कवियुनरमे वकं सहजनेय वचं मम । तथापि न विमोहयत्यम रमेधयां तन्मनः परस्परसंहाप्रमशक्ति का भरत ॥२६|| अर्थ-अनुभवन करनेवाला कहे है। जो मेरा आत्मतत्व है सो कहूं तो मेकक लसे है अने卐 卐 काकार दीखे है । बहुरि कहूं अमेवक कहिये अनेकाकाररहित शुद्व एकाकार दोखे है । बहुरि .. कहूं मेचकामेचक कहिये दोऊ रूप दोखे है। तोऊ जे निर्मलबुद्धि हैं तिनिका मन भमरूप नाहीं करे है। जातें कैसा है ? परस्पर भले प्रकार मिलो जे प्रकट अनेक शक्ति तिनिका 1- समूहस्वरूप स्फुरायमान होता है। " भावार्थ-आत्मतत्व है तो अनेकशक्तीकू लिये है। तातें कोई समस्या ता अनक प्राकार के कर्म उदयके निमित्तकरि अनुभवमैं आवे हैं। बहुरि कोई अवस्थामैं शुद्ध एकाकार:अनुभव आवे हैं । बहुरि कोई अवस्थामैं शुद्धाशुद्धरूप अनुभवमें आये है। तौऊ यथार्थज्ञानी स्थाद्वादक बल卐 करि भमरूप न होय है। जैसा है तैसा माने है। ज्ञानमात्रसूं च्युत न होय है । अब कहे हैं, ... अनेकरूपकू धारता यह आत्माका अद्भुत आश्चर्यकारी विभव है। - पृथ्वीछन्दः इतो गतमनेकता दधदितः सदाऽप्येकतामितः क्षणविभङ्गुरं ध्र वमितः सदैवोदयात् । इतः परमविस्तृतं धृतमितः प्रदेशनिजैरहो सहजमात्मनस्तदिदमदभुतं वैभवम् ॥ ७॥ + 卐卐5555 卐卐5 + +

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