Book Title: Samayprabhrut
Author(s): Kundkundacharya, 
Publisher: Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi

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Page 653
________________ ' ' + + + + ++ भावार्थ-आत्मामैं अनेकशक्ति हैं, अर एक एक शक्तिका ग्राहक एक एक नय है, सो। समय नयनिकी एकांत दृष्टिकरि ही देखिये तो आत्माको खंड खंड होय नाश होय जाय । तातें स्या.. द्वादी नयनिका विरोध मेटि चैतन्यमात्र वस्तु अनेकशक्तिसमूहरूप सामान्यविशेषस्वरूप सर्व शक्तिमय एकज्ञानमात्र अनुभव करे है। ऐसा वस्तूका स्वरूप है तामें विरोध नाहीं । अब अखंड) - आत्माका ऐसें अनुभव करे सो कहे हैं। न द्रव्येण खण्डयामि न क्षेत्रेण खण्डयामि न कालेन खण्डयामि । न भावेन खण्डयामि सुविशुद्ध एको ज्ञानमात्री भावोऽस्मि । __ अर्थ-ज्ञानी शुद्ध नयका आलम्बन लेकरि ऐसे अनुभवे, जो मैं मेरे शुद्धात्मस्वरूपकू द्रव्य. म करि नाहीं खंडू हौं भेद नाहीं देखू हौं। तथा क्षेत्रकरि नाहीं खंडूं हों। तथा कालकरि नाहीं॥ खंडूं हौं । तथा भावकरि नाही खंडूं हौं । भलै प्रकार विशुद्ध निर्मल एक ज्ञानमय भाव हौं। - भावार्थ---शुद्धनयकरि देखिये तब द्रव्यक्षेत्रकालभावकरि शुद्ध चैतन्यमात्र भावविर्षे कि 4. भी भेद नाहीं दीखे है । तातें ज्ञानी अभेदज्ञानस्वरूप अनुभवमें भेद नाहीं करे है । अब कहे हैं, जो ज्ञान तो मैं हौं, ज्ञेय ज्ञेय है। शालिनीछन्दः योऽयं भावो ज्ञानमात्रोऽहमस्मि ज्ञयो शेयज्ञानमात्रः स नैव । यो झंगज्ञानकल्लोलवल्गन् ज्ञानज्ञेयज्ञामद्वस्तुमात्रः||२शा म अर्थ-जो यह ज्ञानमात्र भाव में ही सो ज्ञेयका ज्ञानमात्र ही नाहीं जानना । तो यह ज्ञानमात्रभाव कैसा जानना ? ज्ञेयनिके आकार जे ज्ञानके कल्लोल तिनिकू विलगता ऐसा ज्ञान सो ही ज्ञान, सो ही ज्ञेय, सो ही ज्ञाता ऐसें ज्ञान, ज्ञेय, ज्ञाता इनि तीन भावनिसहित वस्तुमात्र 1- जानना। भावार्थ-अनुभव करते ज्ञानमात्र अनुभवै । तब बाह्य ज्ञेय तो न्यारे ही हैं ज्ञानमैं पैठे नाही, प बहुरि ज्ञेयनिके आकारकी झलक ज्ञानमैं है । सो ज्ञान भी ज्ञेयाकाररूप दीखे हैं, ए ज्ञानके 15 + + + + +

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