Book Title: Samayprabhrut
Author(s): Kundkundacharya, 
Publisher: Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi

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Page 644
________________ फफफफफफफफफफफफ 卐 卐 卐 माणकरि अवस्थित ऐसें दोऊ भावकूं लिये लोकाकाशपरिमाणस्वरूप अवयवपणा हे लक्षण जाका 5 ऐसी नियतप्रदेशत्वशक्ति चौवोसभी है । आत्माका लोकपरिमाण असंख्यात प्रदेश नियत है। सो संसार अवस्थामै तौ संकुचे विस्तरे है । अर मोक्ष अवस्थामैं चरमशरीरसूं किछू घाटि अवस्थित फ है। ऐसी शक्ति है । 卐 卐 5 रीवा स्वधर्मव्यापकत्यशक्तिः । अर्थ - सर्व ही शरीरनिमेँ एकस्वरूपरूप रहना यह स्वधर्मव्यापकत्वशक्ति पचीसमी है। 5 5 शरीरके धर्मरूप न होना अपने धर्मनिर्मे व्यापना यह शक्ति है । स्वपवमानासमानसमानासमानत्रिविधभावधारणात्मिका साधारणासाधारणसाधारणा साधारणधर्मत्वशक्तिः । 卐 जाय हैं । तातें निष्क्रियत्वशक्ति भी या है । आमंसारसंहरण त्रिस्तरणलक्षणउक्षित किञ्चिदून चरमशरीरपरिमाणावस्थित लोकाकाशसम्मितात्मावयवत्वलक्षणा नियतप्रदेशत्वशक्तिः । अर्थ - अनादिसंसारतें लगाय संकोचविस्तारकरि चिन्हित अर किंचित् ऊन चरमशरीरपरि 卐 卐 तिसस्वरूप तेईसमी निष्कियत्वशक्ति है। सकलकर्मका अभाव होय तक प्रदेशनिका कंप मिटि फ फ्र 卐 கமிகமிகக்ழகமிமிழகபிழி 卐 卐 卐 अर्थ —- परस्पर भिन्नलक्षणस्वरूप जे अनंत स्वभाव तिनिकरि भावित मिल्या हुवा जो एक भाव सो है लक्षण जाका ऐसी अनंतधर्मत्वशक्ति सताईसमी है । फ्र अर्थ- आप परके समानधर्म अर असमानधर्म अर समानासमान धर्म ऐसें तीन प्रकारके भावधारणस्वरूप यह साधारणासाधारणसाधारणासाधारणधर्मव नामा शक्ति छवीसमी है । विलक्षणानर्तकभावलक्षणाऽनन्त धर्मत्वशक्तिः । तदतद्रूपमयत्वलक्षणाविरुद्ध धर्मत्वशक्तिः । अर्थ - तत्स्वरूप अर अतत्स्वरूप तिनिमयपणा है लक्षण जाका ऐसी विरुद्धधर्मत्वशक्ति 5 अठाईसमी है । 55 卐 卐

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