Book Title: Samayprabhrut
Author(s): Kundkundacharya, 
Publisher: Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi

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Page 647
________________ + + ++ + भाव्यमानमावाधारत्वमयी अधिकरणशक्तिः । प्रय अर्थ-भाव्यमान कहिये भावनेमैं आवता जो भाव तिसका आधारपणामयी छियालीसा । अधिकरणशक्ति है। म्वभावमात्रस्वम्यामिरवमयी सम्बन्धशक्तिः । . अर्थ---अपना भाव तिस मात्र स्वस्वामिपणा तिस मयी संबंधशक्ति सैतालीसमी है । अपना भावनिका स्वामी आप है यह संबंध है ऐसे सैतालीस शक्तीके नाम लिये। इनकू आदि लेकरि + अनेकशक्तिकरि युक्त आत्मा है । तोऊ ज्ञानमात्रपणाकू नाही छोडे है । अब इस अर्थका कलशरूप काव्य है। वसन्ततिलकाछन्दः इत्याद्यनकनिजशक्तिसुनिर्भरोऽपि यो झानमात्रमयतां न जहाति भावः । एवं क्रमाक्रमविवर्ति विवर्तचित्र तद्रव्यपर्ययमयं चिदिहास्ति वस्तु ॥१८॥ __ अर्थ-इति कहिये ऐसे ए सैतालीस शक्ति कहि तिनिकू आदि लेकरि अनेक अपनी शक्तिनिकरि भलै प्रकार भया है तोऊ जो भाव ज्ञानमात्रमयीपणाकू नाहीं छोडे है सो चैतन्य आत्मा के - द्रव्यपर्यायमयी इस लोकमै वस्तु है । कैसा है ? कमरूप अक्रमरूप विशेष वर्तनेवाले जे विवत 1 कहिये परिणमनके विकाररूप अवस्था तिनिकरि चित्र कहिये नाना प्रकार होय प्रवर्ते है। 卐 के भावार्थ-कोई जानेगा कि ज्ञानमात्र कह्या सो आत्मा एकस्वरूप ही है । सो ऐसें नाहीं है। .. वस्तुका स्वरूप द्रव्यपर्यायमयी है, अर चैतन्य भी यस्तु है, सो अनंतशक्तिकरि भरया है। सो मनमरूप अर अक्रमरूप अनेक परिणामके विकारनिका समूहरूप अनेकाकार होय है। अर ज्ञान , असाधारण भाय है ता• नाही छोडे है। सर्व अवस्था परिणामपर्यायी हैं ते ज्ञानमय हैं । अव " 卐 इस अनेकस्वरूप वस्तूकुंज जाने हैं श्रद्धे हैं, अनुभवे हैं तिनिके बडाईके अर्थ कलशरूप काव्य ॥ फ़卐卐卐

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