Book Title: Samayprabhrut
Author(s): Kundkundacharya, 
Publisher: Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi

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Page 642
________________ म अर्थ-स्वयम स ॥ ॐ ॥ 乐乐 乐乐 乐乐 乐乐 乐 स्वयम्प्रकाशमानांवेशदस्वसंवित्तिमयो प्रकाशशक्तिः । ___ अर्थ-स्वयमेव आ आप प्रमाशमान विशद स्पष्ट खसंवित्ति कहिये अपना अनुभव, तिसमयी । प्रकाश नामा शक्ति बारमो है। क्षेत्रकालानवच्छिन्नचिद्विलासात्मिकाऽसङ्कुचितविकासत्वशक्तिः । का अर्थ क्षेत्रकालकर अमर्यादरूप जो चैतन्यका विलास तिसस्वरूप असंकुचितविकासव नामा तेरमी शक्ति है। अन्याक्रियमाणान्याकारकैकद्रव्यात्मिकाऽकार्यकारणशक्तिः । अर्थ-अन्यकरि न करनेयोग्य अर अन्यका कारण नाहीं ऐसा एक द्रव्य तिस खरूप 1 अकार्यकारणत्व नामा चौदमी शक्ति है। परात्मनिमित्तकशेयझानाकारग्रहणग्राहणस्वभावरूपा परिणम्यपरिणामात्मकशक्तिः। - अर्थ-पर अर आप है निमित्त जिनिको ऐसा ज्ञेयाकार अर ज्ञानाकार तिनिका ग्रहण करना अर ग्रहण करावना पेसा स्वभाव है रूप जाका ऐसी परिणम्यपरिणामालक नामा पंदरमी शक्ति 卐 है। शेयाकार अर ज्ञानाकर आप ही परिणमे है यह शक्ति है। अन्यूनातिरिक्तस्वरूपनियतत्वस्वरूपा त्यागोपादानशून्यत्वशक्तिः ।। 卐 अर्थ-अन्यून कहिये घटता नाही, अर अनतिरिक्त कहिये वधता नाहीं ऐसें खरूपत्रिवें ॥ .. नियतत्व कहिये नियमरूप जैसाका तैसा रहना तिसरूप त्यागापादानशून्यत्व नामा सोलमी ... 卐 शक्ति है। षट्स्यानपतितद्धिहानिपरिणतस्वरूपप्रतिष्ठत्वकारणविशिष्टगुणात्मिका अगुरुलघुत्वशक्तिः । __अर्थ-षट्स्थानपतित वृद्धिहानिरूप परिणया जो वस्तूका निजखरूपकी प्रतिष्ठाका कारण15 विशिष्ठ अगुरुलघुत्वनामा गुण तिस स्वरूप अगुरुलघुत्र नामा सतरमी शक्ति है । इस षट्स्थान पतितहानिवृद्धिका स्वरूप गोमटसारग्रंथतें जानना । यह ही अविभाग प्रतिच्छेदकी संख्यारूप जे"

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