________________
--
..समुदायरूप परिणाई जो एक ज्ञप्ति कहिये ज्ञानक्रिया तिलमात्र भावरूपकरि आपै आप स्वयमेव
होनेत आत्माकै ज्ञानमात्रपणा है। आत्माके जेते धर्म हैं तेते सर्व हो ज्ञानके परिणमनरूप हैं। १८ । यद्यपि तिनिके लक्षणभेदकरि भेद है, तथापि प्रदेशभेद नाहीं है। तासे एक असाधारण ज्ञानकू
कहते सर्व यामैं आय गये । याहीतें इस आत्माका ज्ञानमात्र जो एकभाव ताके अंतःपातिनी म कहिये याहीमैं आय पडनेवाली अनंतशक्ति उदय होय है उघडे है। तिनिकू कईकनिकू कहे हैं, .. ._तिनिका टीकामैं संस्कृत पाठ है सो लिखिकरि तिनिकी वचनिका लिखिये हैं।
आत्मद्रव्यहेतुभूतचैतन्यमावभावधारणालक्षणा जीवत्वशक्तिः।। 1- अर्थ-प्रथम तो जीवत्व नामा शक्ति है, सो कैसी है ? आत्मद्रव्यर्फे कारणभूत जो चैतन्य- । मात्रभाव सो ही भया भावप्राण ताका धारणा है लक्षण जाका ऐसी है।
अजडत्वात्मिका चितिशक्तिः । _ अर्थ-यह दूजी चिति शक्ति है सो कैसी है ? अजडपणा कहिये जड नाहीं होय ऐसी है + चेतना जाका स्वरूप ऐसी है।
___ अनाकारोपयोगमयी दृशिशक्तिः । फ़ अर्थ—यह तीसरी दर्शनक्रियारूप शक्ति है । कैसी है ? अनाकार कहिये जामैं ज्ञेयरूप .. आकारका विशेष नाहीं ऐसा जो दर्शनोपयोग सत्तामात्रपदार्थसू उपयुक्त होना, तिसमयी है।
साकारोपयोगमयी ज्ञानशक्तिः । ___ अर्थ—यह चौथी ज्ञानशक्ति है, सो कैसी है ? साकार कहिये ज्ञेयपदार्थका आकाररूप - विशेषतें जुडनेवाला उपयुक्त होनेवाला जो ज्ञान तिसमयी है।
अनाकुलत्वलक्षणा सुखशक्तिः । ____ अर्थ—यह पांचमो सुखशक्ति है। कैसी है ? अनाकुलत्व कहिये आकुलताते रहितपणा है के लक्षण नाका ऐसी है।
hhhhhh 5 5
5 乐乐 乐乐 乐乐 乐乐 乐乐 乐乐』