Book Title: Samayprabhrut
Author(s): Kundkundacharya, 
Publisher: Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi

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Page 639
________________ के भज - यह ज्ञान काहू अन्यद्रव्यमें पाइए नाही, तिस कारणकरि इस ज्ञानलक्षणकी प्रसिद्धि करि, अर'.. " ताकरि लक्ष्य कहिये लखने योग्य जो आत्मा ताकी प्रसिद्धि होय है । लक्षण होय सो जाकं बाह" ल्यपणकरि सर्व जाणे सो होय । अर लक्ष्य होय सो जाफूप्रसिद्ध न जानिये सो होय । योते। लक्षण कहनेत लक्ष्य प्रसिद्ध होय है । इहां फेरि तक करे है, जो इस लक्षणको प्रसिद्धिकरि कहा" साध्य है ? लक्ष्य ही साधने योग्य है, आत्माहीकू साधना था । ताका समाधान—जो अप्रसिद्ध है लक्षण जाकै ऐसा अज्ञानी पुरुषकै लक्ष्यकी प्रसिद्धि नाहीं होय है। अज्ञानीकू पहले लक्षण दिखाइए तब लक्ष्यकू ग्रहण करै । जातें जाके लक्षण प्रसिद्ध होय ताहीके तिस लक्षणस्वरूप 卐 लक्ष्यको प्रसिद्धि होय है। फेरि पूछे है, जो वह लक्ष्य न्यारा ही कहा है; जो ज्ञानकी प्रसिद्धिकरि तिसते न्यारा ही प्रसिद्ध होय है । ताका उत्तर-जो ज्ञानतें न्योरा ही तो लक्ष्य आत्मा नाही है। जाते द्रव्य-- ..पणाकरि ज्ञानके अर आत्माके भेद नाही है--अभेद ही है । इहां फेरि पूछे है, जो ज्ञान आत्मा । अभेदरूप है तो लक्ष्यलक्षणका भेद काहेकरि कीया हुवा होय है ? ताका उत्तर-जो प्रसिद्ध 1- करि प्रसाध्यमानपणा है ताकरि किया भेद है । ज्ञान प्रसिद्ध है। जातें ज्ञानमात्रके स्वसंवेदन करि सिद्धपणा है। सर्व प्राणीनिके स्वसंवेदनरूप अनुभवमै आवे है। तिस प्रसिद्धिकरि साध्या ' हवा तिस ज्ञानतें अविनाभावी जे अनंत धर्म तिनिका समुदायरूप अभिन्नप्रदेशरूप मूर्ति आत्मा है। तातें ज्ञानमात्रवि अचलित निश्चल लगाई उकीरी जो दृष्टि ताकरि क्रमरूप अर अक्रमरूप 卐 -युगपद्प प्रवर्तता जो तिस ज्ञानतें अविनाभूत अनंत धर्मका समूह जेता जो कछू लखिये है। तेता सो कछू समस्त ही एक निश्चयकरि आत्मा है । इस ही प्रयोजनके अर्थी इस अध्यात्मप्रकरणविर्षे इस आत्माका ज्ञानमात्रपणाकरि व्यपदेश किया है, नाम कया है । फेरि पूछे है, जो क्रमरूप अर अक्रमरूप प्रवर्ते हैं अनंत धर्म जाविर्षे ऐसा आत्माके ज्ञानमात्रपणा कैसा है ? ताका समाधान-जो परस्पर व्यतिरिक कहिये न्यारा न्यारा स्वरूपा धारे जे अनंत धर्म तिनिका; 55 5 5 5 5 5 } } } } } } }

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