Book Title: Samayprabhrut
Author(s): Kundkundacharya, 
Publisher: Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi

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Page 616
________________ $ $$ $$ 折 $ 5 乐 乐乐 乐乐 乐 5 छोडि अर दर्शनशानचारित्रनिविर्षे ही आत्माकू युक्त करना । जाते एही मोक्षका मार्ग है । ऐसा सूत्रका उपदेश है। - भावार्थ इहां द्रव्यलिंगनकू छुडाय दर्शनज्ञानचारित्रविर्षे लगावनेका वचन है। सो यह + सामान्य परमार्थवचन है। कोई जानेगा, कि मुनि श्रावक व्रत छुडावनेका उपदेश है। सो ऐसा नाही है । जे केवल द्रव्यलिंगहीकू मोशा जामि नेष धारे शिमिळू पक्ष धुलाई है । जो भेष卐 मात्रतें मोक्ष नाहीं है। परमार्थरूप मोक्षमार्ग आत्माके परिणाम दर्शन ज्ञान चारित्र हैं ते ही हैं । अर व्यवहार आचारसूत्रमैं कहे तिस अनुसार मुनिश्रावककै बाह्य व्रत हैं ते व्यवहारकरि,. 卐 निश्चयमोक्षमार्गके साधक हैं । तिनिळू छुडावै नाहीं ऐसा कहे हैं। जो तिनिका भीममत्व छोडि का .. परमार्थ मोक्षमार्गमें लागै मोक्ष होय है । केवल भेषमात्र मोक्ष नाहीं है ऐसा जानना। आगैरका इस ही अर्थकू दृढ करे हैं ताकी सूचनिकाका श्लोक है। ___अनुष्ट्रप छन्दः दर्शनवानचारित्रत्रयात्मा तम्बमात्मनः । एक एव सदा सेव्यो मोक्षमार्गा समुक्षुणा ॥४६॥ अर्थ-जातें आत्माका तत्त्व कहिये यथार्थरूप दर्शनज्ञानचारित्रका त्रिकस्वरूप है तातें मोक्षकेत । इच्छुक पुरुषनिकरि एक ही यह मोक्षमार्ग सदा सेवने योग्य है। अब यह ही उपदेश गाथाकरि" कहे हैं। सुक्खपहे अप्पाणं ठवेहि वेदयदि झायहि तं चेव । " तत्थेव विहर णिच्च माविरहसु अण्णादव्वेसु ॥१०४॥ मोक्षपथे आल्मानं स्थापय वेदय ध्याय हितं चैव । तत्रैव विहर नित्यं मा विहारिन्यद्रव्येषु ॥१०॥ आत्मख्यातिः-आ संसारात्परद्रव्य रागढ़ पादौ नित्यमव स्त्रप्रशादोषणापतिष्ठमानमपि स्वप्रज्ञागुणनैव ततो व्यावर्त्य । 1- दर्शनज्ञानचारिगेषु नित्यमेवावस्थापयति निश्चितमात्मानं । तथा चियांवरनिरोधेनात्यंतमेकायो भूत्वा दर्शनशानचारित्रा- .. 555555555

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