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.. भी खमेव अनेकांत प्रकाशे है, तो अर्हत भगवान तिसके साधनपणाकरि अनेकांतक कौन अर्थी "
अनुशासन करे हैं--उपदेशरूप करे हैं ? ताका समाधान-जो अज्ञानी जन हैं तिनिके ज्ञानमात्र ॥ आत्मवस्तूका प्रसिद्ध करनेके अर्थी कहे हैं । निश्चयकरि अनेकांतविना ज्ञानमात्र आत्मवस्तु ही
प्रसिद्ध नाहीं होय है। सो ही कहिये है। स्वभाव ही थकी बहुत भावनिकरि भरथा जो यह है 卐 लोक ताविपें सर्वभावनिकै अपने अपने स्वभावकरि अद्वैतपणा है। तोऊ द्वैतपणाका निपेध कर।
नेका असमर्थपणा है । तातें समस्त ही वस्तु है सो स्वरूपविर्षे प्रवृत्ति अर पररूपते व्यावृत्ति इनि । 5 दोऊ रीतिकरि दोऊ भावनिकरि आश्रित है, युक्त है, यह नियम है। सो ही ज्ञानमात्र भाव वियें लगावना । तहां ज्ञानभाव हे सो अन्य बाकीके शेयभावनिकरि सहित अपना निजज्ञानरसका भरकरि प्रवर्त्या जो ज्ञाताज्ञेयका संबंध तिसपणाकरि अनादिहीत ज्ञेयाकार परिणमता ही दीखे ॥ है। तातें जो अज्ञानी जन है सो ज्ञान तत्वकू क्षेचरूप अंगीकार करि अज्ञानी होयकार अर आप
नाशप्राप्त होय है । तिस काल यह अनेकांत है, सो अपना ज्ञानस्वरूपकरि ज्ञेयतें भिन्न ज्ञानॐ तत्त्वकू प्रकट करि अर इस आत्माकू ज्ञातापणाकरि परिणमनतें ज्ञानी करता संता तिस आत्माकू
उदयरूप करे है। नाश न होने दे है ॥२॥ + बहुरि अज्ञानी जन जिस काल ऐसें माने हैं, जो यह सर्व जगत है सो निश्चयकरि एक ... आत्मा है। ऐसे अज्ञानतत्वकू अपना ज्ञानस्वरूपकरि अंगीकार करि अर समस्त जगतकू आपा .. +मानि ग्रहण करि, अपना भिन्न आत्माका नाश करे है। तिस काल परभावस्वरूपकरि अतत् .. कहिये सर्व जगत् एक हो आत्मा नाहीं है, ऐसे भिन्न आत्मस्वरूपपणा प्रकट करि अर यहअनेकांत ।
है सो समस्त जगत्ते भिन्न ज्ञानकू दिखावता संता आत्माका नाश नाहीं करने दे है। २। + बहुरि जिस काल अनेक ज्ञेयनिके आकारनिकरि खंड खंड रूप किया जो एक ज्ञानका ॥ "आकार ताकू देखि एकांतवादी ज्ञानतत्व नाशकू प्राप्त करे है। तिस काल यह अनेकांत है लो । 卐ज्ञानतत्त्वके द्रव्यकरि एकपणाकू प्रकट करता संता ताकू जीवावे है। नाश नाहीं होने देवे है १३॥
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