Book Title: Samayprabhrut
Author(s): Kundkundacharya, 
Publisher: Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi

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Page 635
________________ 乐乐 乐乐 乐乐 乐 $ मनट होतें भी अपना अस्तित्व अपना ही कालतें मानता नष्ट न होय है। यह स्वकाल अपेक्षा 1अस्तित्वका भंग है। पुनः-- अर्यालम्बनकाल एव कलयन् शानस्य सक्वं बहिर्मेयालम्बनलालसेन मनसा भ्राम्यन् पशुनश्यति । । नास्तित्वं परकालतोऽस्य कलयन् स्याद्वादवेदी पुनस्तिष्ठत्यात्मनिखातनित्यसहजज्ञानकपुओभवन् ॥११॥ + अर्थ-पशु अज्ञानी एकांतवादी है सो ज्ञेयपदार्थके आलम्बनकाल ही ज्ञानका अस्तित्व 卐 जानता संता बाह्यज्ञेयका आलंबनविर्षे चित्त• अनुरागसहित करि अर बाह्य श्रमता संता नाशकूफ 1- प्राप्त होय है। बहुरि स्याद्वादका वेदो है सो परकालतें अपना आरमाका नास्तित्वकू जानता .. । संता आत्माविर्षे उकिरया जो नित्य स्वाभाविक ज्ञानपुंज तिस स्वरूप होता संता तिप्ठे है, नष्ट न । ज, होय है। भावाथ-एकाती तो शेयके आलंबनके काल ही शानका सत्त्व जाने है सो ज्ञेयके आलंबएनधि मन लगाय बाह्य भूमता संता नष्ट होय है । बहुरि स्याद्वादी ज्ञेयके कालतें अपना अस्तित्व ॥ नाहीं जाने है, अपने ही कालतें अपना अस्तित्व जाने है। तातें जयते न्यारा ही अपना ज्ञानका + पुंजरूप होता नष्ट न होय है । यह परकाल अपेक्षा नास्तित्वको भंग है । पुनः विश्रान्तः परभावभावकलनान्नित्यं बहिर्वस्तुषु नश्यत्येव पशुः स्वभावमहिमन्येकान्तनिश्चंतनः। सर्वस्मिन्निवतस्वभावभवनज्ञानाद्विभक्तो भवन् स्यावादी तु न नाग्नमेति सहजस्पष्टीकृतप्रल्पयः ।।१२।। म अर्थ-पशु अज्ञानी एकांतवादी है सो परभावकू ही अपना भाव जाननेते बाह्मवस्तुनिवि , " विश्राम करता संता अपना स्वभावकी महिमाविर्षे एकांतकरि निश्चेतन भया जड होता संता 卐 आपनाशकू प्राप्त होय है । बहुरि स्याद्वादी है सो सर्व ही वस्तुनिविर्षे अपना निश्चित नियमरूप) ___ जो स्वभावभावका भवनस्वरूप ज्ञान सातें सर्वते न्यारा होता संता सहजस्वभावका स्पष्ट 卐 प्रत्यक्ष अनुभवरूप किया है प्रत्यय कहिये प्रतीतिरूप जानपना जाने ऐसा भया नाशवं प्राप्त 1 नाहीं होय है। 55 5 55 5 5 55 5 5 5

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