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धोवना कल्यता संता ज्ञान अनेकाकार प्रकट है तोऊ ताकू नाहीं माने है एकाकार हो मानिक ज्ञानका अभाव करे है । वहुरि अनेकांतका जाननेवाला है सो ज्ञ याकारकरि ज्ञानका विचित्रपणा जप "है तोऊ एकपणाप्राप्त ज्ञान है सो आप स्वयमेव प्रक्षाल्या हुवा शुद्ध है, एकाकार है अर " जपर्यायनिकरि ताके अनेकता अनुभव है।।
भावार्थ-एकांतवादी तौ ज्ञानविर्षे ज्ञ याकारकू मैल जाणि एकाकार करनेक्ज्ञयाकारकू धोय प्रदरि करि ज्ञानका नाश करे है । बहुरि अनेकांती ज्ञानकं स्वरूपकरि अनेकाकारपणा माने है।' .. सो ऐसा वस्तुस्वभाव है सो सत्यार्थ है ऐसा अनेकस्वरूप भंग है । पुनः----
प्रत्यक्षालिखितस्फुटस्थिरपरद्रव्यास्तितावञ्चितः स्वद्रव्यानवलोकनेन परितः शून्यः पशुनश्यति ।
स्त्रद्रव्यास्तितया निरूप्प निपुणं सद्यः समुन्मज्जता स्याद्वादी तु विशुद्धबोधमहसा पूर्णो भवन्जीवति ॥६॥1 ____ अर्थ-पशु अज्ञानी एकांतवादी हैं सो प्रत्यक्षप्रमाणकरि आलिखित कहिये चितरथा हुवा । दीखता स्फुट प्रकट स्थल अर स्थिर कहिये निश्चल ऐसा परद्रव्यर्फे देखि तिसका अस्तित्वकरिए
ठिग्या हुवा अपना निज आत्मद्रव्यका अस्तित्व नाहीं देखनेकरि समस्तपणे सर्वथाशून्य होता 卐 आपाका नाश करे है । बहुरि स्याद्वादी है सो अपना निजद्रव्यका अस्तिपणाकरि निपुण जैसे 5 __ होय तैसें निज आत्मद्रव्यका निरूपणकरि तत्काल प्रकट होतो जो विशुद्धज्ञानरूप तेज ताकरि .. जपूर्ण होता जीवे है । नष्ट न होय है। .. भावार्थ--एकांती बाह्य परद्रव्यकू प्रत्यक्ष देखि ताहीका अस्तित्व मान्या। अर अपना आत्म
द्रव्य इंद्रियप्रत्यक्षकरि दीख्या नाहीं। जाकू शून्य मानि आत्माका नाश करे है । बहुरि स्याद्वादी । ज्ञानरूप तेजकर अपना आत्मद्रव्यका अस्तित्वके अवलोकनकर आप जीवे है, आपाका नाश "नाहीं करे है । यह स्वद्रव्यअपेक्षा अस्तित्वका भंग है । पुनः--
सर्वद्रव्यमयं प्रपद्य पुरुष दुर्वासनावासितः स्वद्रव्यममतः पशुः किल परद्रव्येषु विश्राम्यति । ___ स्याद्वादी तु समस्तवस्तुष परद्रव्यात्मना नास्तिता जाननिर्मलशुद्धबोधमहिमा स्वद्रव्यमेवाश्रयेत् ॥१॥
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