Book Title: Samayprabhrut
Author(s): Kundkundacharya, 
Publisher: Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi

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Page 630
________________ फ्रफ़ फफफफफफफफफ 卐 15 卐 卐 शार्दूलविक्रीडितच्छन्दः बाह्यार्थः परिपीतमुज्झितनिजप्रव्यक्तिरिक्तभवत् विश्रान्तं पररूप एवं परितो ज्ञानं पशोः सीदति । यत्तचदिह स्वरूप इति स्वाद्रादिनस्तत्पुनद् सेन्ममनस्वभाव नरतः पूर्ण समुन्मज्जति ||२|| अर्थ - पशु कहिये अज्ञानी तिर्यंचसमान सर्वथा एकांती, ताका ज्ञान है सो बाह्य ज्ञेय पार्थनिरस्तपणे पीया गया ऐसा होता संता छोडि जो अपनी व्यक्ति सिनिकरि रीता समस्तपणेकर पररूपही के विषै विश्रांत भया रहि गया । अपना रूप किछू भी न रह्या, सोना भया । वहरि स्याहादीका ज्ञान है सो जो अपने स्वरूप जो है सो स्वरूप ही है 5 ज्ञानस्वरूप ही है, ऐसें तत्स्वरूप भया inr अतिशयकार प्रकट भया जो ज्ञान स्वभाव ताके भरते संपूर्ण उदयरूप प्रकट होष है । समूहरूप தி தி த மிககழிக்பிகமிகக 卐 भावार्थ- कोई सर्वथा एकांती तो ज्ञान सेवाकारमात्र ही माने है। ना तो ज्ञान ज्ञेय पीय गये आप कलू न रह्या । वहरि स्यादी ज्ञान अपने परि ज्ञान ही है, ज्ञेयाकार भया तौऊ arrant नाहीं छोड़े है, ऐसे माने हैं। ता तत्स्वरूप ज्ञान प्रकट प्रकाशमान है । पुनःशार्दूलविक्रीडि फ्र विश्वं ज्ञानमिति प्रत सभूतो विश्वमयः पशुः पशुत्रि स्वच्छन्दमाचेष्टते । यतत्पररूपतो न तदिति स्याद्वाददर्शी पुनर्विवाद भिन्नमविश्वविश्वघटितं तस्य स्वच्छं स्वशेन ॥३॥ अर्थ - पशु, कहिये अज्ञानी सर्वथा एकांतवादी है सो समस्त ज्ञेयपदार्थ है सो ज्ञानमय है, ऐसें विचारि करि, अर सकल जगतकूं निजतत्त्वकी आशाकरि देखि आप समस्त वस्तुमयी होय । अर तिर्यचकी ज्यौं स्वच्छंद पेष्टा करे है । बहरि स्याद्वादका देखनेवाला है सो तिस ज्ञानका निज स्वरूप ऐसा देखे है, जो अपने ज्ञानस्वरूप तत्स्वरूप है। सो पर जे ज्ञेयस्वरूप तिनितें तत्स्वरूप 卐 फ्र फ्र 卐 卐 फ्र नाहीं है । ऐसें समस्त वस्तुतें भिन्न अर समस्तज्ञ यवस्तुनिकरि घडया तौऊ समस्त ज्ञेयस्वरूप फ्र नाहीं, ज्ञेयाकाररूप भया तौऊ न्यारा ऐसा ज्ञानका स्वरूप अनुभव है । 卐 प्रा -

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