Book Title: Samayprabhrut
Author(s): Kundkundacharya, 
Publisher: Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi

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Page 628
________________ फ्रफ़ फफफफफफफफफफफ 卐 卐 बहुरि जिस काल एकांती ज्ञानका एक आकारका ग्रहण करनेके अर्थि अनेक ज्ञेयनिके आकार ज्ञान प्रभ हैं, तिनका लाग करि अर ज्ञानस्वरूप आत्माका नाश करे है। लिस काल 5 यह अनेकांत है सो ज्ञानके पर्यायनिकरि अनेकपणाकूं प्रकट करता संता आत्माका नाश नाहीं करने है फफफफफफफफफफफफफ बहुरि जिस काल एकांती है सो ज्ञायमान ज्ञानमें आवते जे परद्रव्य तिनिके परिणमनातें 卐 ज्ञाताद्रव्यकू' परद्रव्यपणाकरि अंगीकार करि आत्माका नाश करे है । तिस काल अपना स्वद्रव्य 卐 करि आमाका सकूं प्रकट करता संता अनेकांत है सो ही तिस आत्माकू जोवा है नाश नाहीं होने दे है || 卐 बहुरि जिस काल एकांती है, सो सर्वद्रव्य है ते मैही हों ऐसें परद्रव्यनिकं ज्ञाताद्रव्यकरि 5 5 अंगीकार करि आत्माका नाश करे है, तिस काल परद्रव्यरूप आत्मा नाहीं है, ऐसें परद्रव्यकरि आत्माका असकूं प्रकट करता संता अनेकांत ही नाश करने नाहीं दे है ॥६॥ 卐 बहुरि परक्षेत्रत्रि प्राप्त जे ज्ञेय पदार्थ तिनिके आकार तिनिसारिखा परिणमनेर्ते परक्षेत्र- 5 etair ज्ञान सद्रूप अंगीकार करि एकांती नाशकुं प्राप्त करे है, तिस काल अपना क्षेत्रकरि 卐 अस्तित्व प्रकट करता संता अनेकांत ही जीवाये है, नाश नाहीं होने दे है |७| 卐 बहुरि अपने क्षेत्र होने के अर्थि परक्षेत्रविषै प्राप्त ज्ञेय तिनिका आकार ज्ञानका होना ताका त्यागकर ज्ञानक्रं ज्ञेयाकाररहित तुच्छ करता संता एकांती आत्माका नाश करे हैं तिल 卐 4 काल अनेकांत है सो ज्ञानकै अपना क्षेत्रविषे परक्षेत्र विषै प्राप्त जे ज्ञेय तिनिके आकाररूप परिण 卐 मनेका स्वभावपणा है, ऐसें परक्षेत्रकरि नास्तिपणाकूं प्रगट करता संता नाश करने न दे है || 卐 बहुरि जिस काल पूर्वे आलंबे थे ज्ञेय पदार्थ तिनका विनाशका कालविवें ज्ञानका असस्त्रकं ६० अंगीकार अज्ञानका करि एकांती ज्ञानकूं नाशकूं प्राप्त करे है, तिस काल अपना ज्ञानहीका कालकरि सत्त्वकूं प्रगट करता संता अनेकांत ही ज्ञानकूं जीवावे है, नाश न होने दे है । ६ ॥ ... 卐 卐

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