________________
फफफफफफफफफफफफफ
卐
卐
शुद्धज्ञानमय समयसारको प्राप्ति नहीं होय है। अब इस हो अर्थके
वियोगिनीछन्दः
व्यवहारविमृष्टयः परमार्थ कलयन्ति नो जनाः । तुषबोधविमुग्धबुद्धयः कलयन्तीह तुषं न तंडुलम् ||४६ ॥
卐
अर्थ -- जे जन व्यवहारहोविषै विमूढ मोही है बुद्धि जिनिकी ऐसे हैं ते परमार्थकूं नाही' जाने हैं। जैसें लोकविर्षे जे तुसहीके ज्ञानविषै विमुग्धबुद्धि जन हैं ते तुसही तंदुल जाने हैं। अर तंदुलकं तंदुल नाहीं जाने हैं। 卐
卐
भावार्थ -- जे परमार्थ आत्माका स्वरूप नाहीं जाने हैं अर व्यवहारहीत्रिवें मूढ होय रहे हैं: शरीरादि परद्रव्यही आत्मा जाने हैं ते परमार्थ आत्माकूं नाहीं जाने हैं। जैसें तुष तेंडुलका भेद तौ जाने नाही' अर परालकं कुठे तिनिकै तंडुलकी प्राप्ति नाहीं । तुस तंडुलका भेदज्ञान 15 भये संते तंडुल पावे | आगे इस ही अर्थ दृढ करनेकू कहे हैं ।
I
भय
E6 卐
रूपकाव्य कहे हैं।
55
-
स्वागत। छन्दः
फ
फ द्रव्यलिङ्गमम फारमीलितैर्ह स्वते समयसार एव न । द्रव्यलिङ्गमिह यत्किलान्यतो ज्ञानमंक्रमिदमंत्र हि स्वतः ||५० ||
अर्थ - द्रव्यलिंगके ममकारकरि भोलित हैं मो ही आंधे हैं तिनिकरि समयसार है सो फ्र देखिये ही नाहीं है । जातैं इस लोकविषै द्रव्यलिंग हैं सो तो अन्य द्रव्यतें होय है । अर यह ज्ञान है सो आप आत्मद्रव्यते ही होय है । 卐
卐
भावार्थ--- जे द्रव्यलिंगकूं ही आपा माने हैं ते आंधे हैं । तिनिकूं आपा पर सूझ्या नाहीं । आगे कहे हैं जो व्यवहारनय तो मुनि भावकके भेदकरि लिंग दोय प्रकार हैं, तिनि दोऊकूं मोक्षमार्ग न कहे है अर निश्चयनय काहू हो लिंगकूं मोक्षमार्ग न कहे है । गाथा
फ्र
卐
卐
फ
ववहारिओ पुण णओ दोण्णिवि लिंगाणि भणदि मोक्खरहे । णिच्छयणओ दु णिच्छदि मोक्खपहे सव्वलिंगाणि ॥ १०६ ॥
卐
卐
5