Book Title: Samayprabhrut
Author(s): Kundkundacharya, 
Publisher: Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi

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Page 622
________________ + ++ . + - तिनिके समयसारकी प्राप्ति होय है । ते ही मोक्षकू पावे हैं। आगे कहे हैं, जो बहुत कहनेकरि .. "पूरि पडौ, एक परमार्थहीका चिंतवन करना। मालिनीछन्दः अलमलमतिजस्पैर्विकल्पैरनपैरयमिह परमार्थचिंत्यतां नित्यमकः । स्वरसविमरपूर्णज्ञानविस्फूर्तिमात्राम खलु समयसारादादुत्तरं किश्चिदस्ति ॥५१॥ .. अर्थ-आचार्य कहे हैं, जो अति वहत कहनेकरि अर बहत दुर्विकल्पनिकरि तौ पूरि पडो।" के इस अध्यात्मग्रन्थविर्षे यह परमार्थ है, सो हो एक निरंतर अनुभवन करना । जातें निश्चयकार - अपने रसका फैलावकरि पू जो ज्ञान ताका स्फुरायमान होनेमात्र जो समपसार परमात्मा " तिसशिवाय अन्य किछु भो सार नाहीं है। 卐 भावार्थ-पूर्णज्ञानस्वरूप आत्माका अनुमान करना। निश्चरकरि इस उपरांति किछू भी .. सार नाही है। आगे इस समयसार ग्रंथ पूर्ण को है । ताको सूचनिकाका श्लोक है। 卐 इदमकं जगचक्षुरक्षयं याति पूर्णताम् । विज्ञानयनमानन्दमयमध्यक्षतां नया ॥२॥ " अर्थ--इदं कहिये यह समयप्राभूत है सो पूर्णताकू प्राप्त होय है । केला है ! अक्षय कहिये 5 मजाका विनाश न होय ऐसा जगतके अद्वितीय नेत्रसमान है। जाते कहा करता है ? विज्ञानयन जो शुद्ध परमात्मा समयसार आनंदमय ताकू प्रत्यक्ष प्राप्त करता संता है। भावार्थ--यह समयप्रामृत ग्रंथ है सो ववनरूय तया ज्ञानरूप दोऊ ही प्रकार करि नेत्र-5 के समान है । जातें जैसे नेत्र घटपटादिक प्रत्यक्ष दिखावे है तैसें यह शुद्ध आत्माका स्वरूपकू । .._प्रत्यक्ष अनुभवगोचर दिखाये है । अब याकू आचार्य पूर्ण करे हैं, सो याका महिमारूप पडनेका प्रफलकी गाथा कहे हैं।

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