Book Title: Samayprabhrut
Author(s): Kundkundacharya, 
Publisher: Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi

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Page 624
________________ + + + + 5 भावार्ग-इस शास्त्रका नाम समयप्रामृत है । सो समय नाम पदार्थका हे ताका कहनेकाला ॥ है। तथा समय नाम आत्मा है ताका कहनेवाला है। सो आत्मा समस्त पदार्थनिका प्रकाशने- ... प्रास वाला है। ताकं यह कहे है । सो समस्तपदार्थनिका कहनेवाला होय ताक शब्दब्रह्म कहिये। ॐ सो ऐसे आत्माकू कहने” इस शास्त्रकू शब्दब्रह्मसारिखा कहिये । शब्दब्रह्म तौ द्वादशांगशास्त्र - "है, ताकी उपमा याकू भी है सो यह शब्दब्रह्म परब्रह्म जो शृद्धपरमात्मा ताकू साक्षात् दिखावे " 卐है। जो इस शास्त्रकू पढिकरि याके यथार्थ अर्थविर्षे ठहरेगा सो परब्रह्मकुंपावेगा । याही उत्तम. 1- सौख्य जाकू परमानंद कहिये ऐसा स्वाभिक स्वाधीन जामें बाधा नाहीं विच्छेद नाहीं अकि. नाशी ऐसा सुख पावेगा याहीत भव्यजीव अपना कल्याणके अर्थी या पढो, सुण, निरंतर पायाहीका स्मरण ध्यान राखो ज्यौं अविनाशीमुखकी प्राप्ति होय । यह श्रीगुरुनिका उपदेश है। "अब इस सर्वविशुद्धज्ञानका अधिकारको पूर्णताका कलशरूप श्लोक कहे हैं। अनुष्टुप छन्दः इतीदमात्मनस्तस्यं ज्ञानमात्रमवस्थितम् । अखण्डमकमचलं स्वसंवेद्यमबाधितम् ॥५३|| 卐 अर्थ-इति कहिये याप्रकार आत्माका तत्व कहिये परमार्थभूत स्वरूप ज्ञानमात्र अवस्थित ॥ ...भया निश्चित ठहरया। कैसा है ज्ञानमात्रतय ? अखंड है अनेक ज्ञयाकारकरि तथा प्रतिपक्षि भकर्मकरि खंड खंड दीखे है, तौऊ ज्ञानमात्रवि खंड नाहीं है। बहरि याहीते एकरूप है । बहुरि -अचल है ज्ञानरूपतें चल न होय अर ज्ञ यरूप नाहीं है। बहुरि स्वसंवेद्य है आपहीकरि आप ।। जाननेयोग्य है । बहुरि अबाधित है काहू खोटी युक्तिकरि वाच्या नाहीं जाय है। 4. भावार्थ-इहां आत्माका निजस्वरूप ज्ञान ही कहा है। जातें आत्मामें अनंत धर्म हैं, तिनिमें 4 "केई तौ साधारण हैं, ते तो अतिव्याप्तिरूप हैं। तिनि आत्मा पिछाण्या जाय नाहीं । बहुरि केई" अपर्यायाधित हैं, कोई अवस्थामैं है कोईमैं नाहीं है, ते अव्याप्तिरूप हैं। तिनितें भी आत्मा पिछाण्या जाय नाहीं । बहुरि चेतनता है सो यद्यपि लक्षण है तथापि शक्तिमात्र है, सो अदृष्ट + 卐 卐卐卐 __ __ _ ___ _ __ __

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