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है ! अतुल कहिये जाके बराबरी अन्य नाहीं ऐसा है आलोक कहिये प्रकाश जाका, सूर्यादिकका मय , प्रकाशकी ज्ञानप्रकाशकं उपमा नाही लागे। बहुरि अपने स्वभावको जो प्रथा ताका प्राग्भार
है, जाका भार अन्य सहारी शकै नाहीं । बहुरि अमल है, रागादिक विकारमलकरि रहित है। "ऐसा परमात्माका स्वरूपकू द्रव्यलिंगी नाहीं पावे है। अब इस अर्थकी गाथा कहे हैं । गाथा
पाखंडियलिंगेसु व गिहलिंगेसु व बहुप्पयारेसु । । कुव्वंति जे मत्ति तेहिं ण णादं समयसारं ॥१०५॥
पाखंडिलिंगेषु वा गृहिलिंगेषु वा बहुप्रकारेषु ।
कुर्व ति ये ममतां तैर्न शातः समयसारः ॥१०५॥ ___आत्मख्यातिः-ये खलु श्रमणोऽहं श्रमणोपासकोऽहमिति द्रव्यलिंगममकारेण मिथ्या कारं कुर्वति तेज्नादिरु
हव्यवहारविमूहाः प्रोदविकं निश्चयमनारदाः परमार्थसत्यं भगवंतं समयसारं न पश्यति ।। ___अर्थ-जे पुरुष पाखंडिलिंगनिविर्षे अथवा गृहस्थलिंगनिविर्षे बहुत प्रकार हैं, तिनिविर्षे ममता करे हैं, जो हमारे यह ही मोक्षके देनहारे हैं, तिनि पुरुषनि समयसारकू जान्या नाही।। _____टीका--जे पुरुष निश्चयकरि ऐसे माने हैं, जो मैं श्रमण हौं, मुनि हौं अथवा श्रमणका 5 उपासक हौं, सेक्क हौं, श्रावक हौं, ऐसे द्रव्यलिंगवि ममकारकरि मिथ्या अहंकार करे हैं, ते ..
अनादिका प्रसिद्ध चल्या आया जो व्यवहार ताविर्षे मूढ मोही भये संते प्रौढ़ कहिये बड़ा है । - भेदज्ञान जामें ऐसा निश्चयनयकू नाही प्राप्त भये संते परमार्थकरि सत्यार्थ जो भगवान् ज्ञान- -
रूप समयसार ताहि नाहीं देखे हैं नाही पावे हैं। के भावार्थ-जे अनादिकालका परद्रव्यके संयोगते भया जो व्यवहार ताही विषे मूह मोहीम ___ हैं, ते ऐसे जाने हैं, जो यह बाह्य महावतादिरूप भेष है सो ही हमकू मोक्ष प्राप्त करेगा । अर 卐 भेदज्ञानका जातें जानना होय ऐसा निश्चयनयकू नाही जाने हैं । तिनिके सत्यार्थ परमात्मस्प卐
听听听听听听听听听
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