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फ़ टीका निश्चयकरि द्रव्यलिंग है सो माक्षका प्राग नाहीं है । जाते याकै शरीरकै आश्रित._ पणा हात संते यह परद्रव्य है । बहुरि दर्शन ज्ञान चारित्र हैं ते ही मोक्षमार्ग हैं। जाते इनिके आत्माके आश्रितपणा होतें सतें निज आत्मद्रव्यपणा है !
भावार्थ-मोक्ष है सो सर्व कर्मका अभावरूप आत्माका परिणाम है । सो याका कारण भी.. " आत्माका परिणाम ही चाहिये । तातें दर्शन ज्ञान चारित्र हैं ते आत्माका परिणाम हैं । तात ते । 卐 ही मोक्षक मार्ग हैं, यह निश्चयकरि कहा । बहुरि लिंग है सो देहमय है । देह है सो पुद्गल-1
द्रव्यमय हैं । तातें आत्माकै देह मोक्षका मार्ग नाहीं है । परमार्थकरि अन्यद्रव्यके अन्यद्रव्य किछु। करे नाही यह नियम है । आर्गे कहे हैं, जो जातें ऐसें है द्रव्यलिंग मोक्षमार्ग नाही, ताते ऐसे करना यह उपदेश करे हैं।
जहमा जहित्तु लिंगे सागारणगारिएहि वा गहिदे । दसणणाणचरित्ते अप्पाणं जुज मोक्खपहे ॥१०३॥
तस्मात्तु जहित्वा लिंगानि सागारेरनगारिकर्वा गृहीतानि ।
दर्शनज्ञानचारिजो आत्मानं युश्व मोक्षपधे ॥१३॥ आत्मरत्यातिः-यत्तो व्यलिंगं न मोक्षमार्गः, ततः समस्तमपि द्रव्यलिंगं त्यक्त्वा दर्शनज्ञानचारित्रे चैव मोक्ष5 मार्गत्वात आत्मा याक्तव्य इति सूत्रानुमतिः।।
अर्थ-जाते द्रव्यलिंग मोक्षमार्ग नाही, तातें सागार कहिये गृहस्थनिकरि, अर अनगार। 卐 कहिये गृहक त्यागि मुनि होयकरि जे लिंग आहे तिनि• छोडिकरि अपने आत्माकू दर्शनज्ञान) 1. चारित्रस्वरूप मोक्षमार्गविर्षे युक्त करौ । यह श्रीगुरुनिका उपदेश है।
टीका--जातें द्रव्यलिंग है सो मोक्षका मार्ग नाही है, तातें समस्त हो द्रव्यलिंग हैं ताहिक