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________________ म卐95/ $ 乐 乐乐 乐乐 फ़ टीका निश्चयकरि द्रव्यलिंग है सो माक्षका प्राग नाहीं है । जाते याकै शरीरकै आश्रित._ पणा हात संते यह परद्रव्य है । बहुरि दर्शन ज्ञान चारित्र हैं ते ही मोक्षमार्ग हैं। जाते इनिके आत्माके आश्रितपणा होतें सतें निज आत्मद्रव्यपणा है ! भावार्थ-मोक्ष है सो सर्व कर्मका अभावरूप आत्माका परिणाम है । सो याका कारण भी.. " आत्माका परिणाम ही चाहिये । तातें दर्शन ज्ञान चारित्र हैं ते आत्माका परिणाम हैं । तात ते । 卐 ही मोक्षक मार्ग हैं, यह निश्चयकरि कहा । बहुरि लिंग है सो देहमय है । देह है सो पुद्गल-1 द्रव्यमय हैं । तातें आत्माकै देह मोक्षका मार्ग नाहीं है । परमार्थकरि अन्यद्रव्यके अन्यद्रव्य किछु। करे नाही यह नियम है । आर्गे कहे हैं, जो जातें ऐसें है द्रव्यलिंग मोक्षमार्ग नाही, ताते ऐसे करना यह उपदेश करे हैं। जहमा जहित्तु लिंगे सागारणगारिएहि वा गहिदे । दसणणाणचरित्ते अप्पाणं जुज मोक्खपहे ॥१०३॥ तस्मात्तु जहित्वा लिंगानि सागारेरनगारिकर्वा गृहीतानि । दर्शनज्ञानचारिजो आत्मानं युश्व मोक्षपधे ॥१३॥ आत्मरत्यातिः-यत्तो व्यलिंगं न मोक्षमार्गः, ततः समस्तमपि द्रव्यलिंगं त्यक्त्वा दर्शनज्ञानचारित्रे चैव मोक्ष5 मार्गत्वात आत्मा याक्तव्य इति सूत्रानुमतिः।। अर्थ-जाते द्रव्यलिंग मोक्षमार्ग नाही, तातें सागार कहिये गृहस्थनिकरि, अर अनगार। 卐 कहिये गृहक त्यागि मुनि होयकरि जे लिंग आहे तिनि• छोडिकरि अपने आत्माकू दर्शनज्ञान) 1. चारित्रस्वरूप मोक्षमार्गविर्षे युक्त करौ । यह श्रीगुरुनिका उपदेश है। टीका--जातें द्रव्यलिंग है सो मोक्षका मार्ग नाही है, तातें समस्त हो द्रव्यलिंग हैं ताहिक
SR No.090449
Book TitleSamayprabhrut
Original Sutra AuthorKundkundacharya
Author
PublisherMussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
Publication Year1988
Total Pages661
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size21 MB
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