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5 मार्ग नाही है। जातें, अहंतदेव हैं से देहके विर्षे निर्ममत्व भये संते लिंगकू छोडिकरि दर्शन
ज्ञानचारित्रहीकू सेवे हैं। ___टीका केईक जन अज्ञानकरि द्रव्यलिंगहीकू मोक्षमार्ग मानते संते मोहकरि द्रव्यलिंगहोकू, अंगीकार कर हैं । सो यह द्रव्यलिंग मोक्षमार्ग मानना अनुपपन्न है। जाते सर्व ही भगवान्। अरहंतदेव हैं तिनिकै शुद्धज्ञानमयीपणा होते संत द्रव्यलिंगका आश्रयभूत जो शरीर ताका" ममकारका त्याग तिस शरीरके आश्रित जो द्रव्यलिंग ताका त्याग करि अर दर्शन ज्ञानचारि-1 त्रनिके मोक्षमार्गपणाकरि सेवना देखिये हैं। ____ भावार्थ-जो देहमय द्रव्यलिंग ही मोक्षका कारण होता तौ अरहतादिक देहका ममत्व छोडिक दर्शनज्ञानचारित्रकू काहे सेवते ? द्रव्यलिंगही मोक्षप्राप्त होते । तातें यह निश्चय भया,
जो देहमलिंग मोक्षमार्ग नाहीं है। परमार्थकरि दर्शनज्ञानचारित्रस्वरूप आत्मा ही मोक्षका भार्ग। 卐 है। आगै यह साधे हैं, जो दर्शनज्ञानचारित्र ही मोक्षमार्ग है । गाथा
णवि एस मोक्खमग्गो पाखंडी गिहमयाणि लिंगाणि। दसणणाणचारित्ताणि मोक्खमग्गं जिणा विति ॥१०२॥
नाप्येष मोक्षमार्गः पाखंडिगृहमयानि लिंगानि।
दर्शनज्ञानचरित्राणि मोक्षमार्ग जिना वदति ॥१०२॥ आत्मख्यातिः--न खलु द्रव्यलिंगं मोक्षमार्गः शरीराश्रितत्वे सति परद्रव्यत्वात् । तस्माद्दर्शनशानचारित्राण्येव । 1- मोक्षमार्गः, आत्माश्रितत्वे सति स्वद्रव्यत्वात् ।
यत एवं
अर्थ-पाखंडिलिंग अर गृहस्थलिंग ये मोक्षमार्ग नाहीं । वर्शन ज्ञान चारित्र हैं ते मोक्षमार्ग हैं। ऐसें जिनदेव कहे हैं।
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