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या भई | ४४|११| बहुरि आगामी कर्मकूं मैं अन्यकूं प्रेरिकरि नाही कराऊंगा वचनकरि, ऐसा म पैतालीसवां भंग है। यामैं एक कारितपरि एक वचन लगाया। तातें ग्यारहको समस्या भई | ४५|११| बहुरि आगामी कर्मकूं मैं अन्यकूं करतेकूं भला नाहीं जानूंगा वचनकरि, ऐसा छियाarea है एक अनुमान लगाया । तातें ग्यारहकी समस्या भई ॥४६॥ 卐 ११। बहुरि आगामी कर्मकूं मैं नाहों करूंगा कायकरि ऐसा सैंतालीसवां भंग है । यामें एक कृतपरि एक काय लगाया । ता ४७११ । बहुरि आगामा कर्मकूं मैं अन्यकूं प्रोरेकरि नाहीं कराऊंगा कायकरि, ऐसा अठतालीसवां भंग है । या काiरतपरि एक काय लगाया । तातैं ग्यारहको समस्या भई १४५|११| बहुरि आगामी कर्मकूं अन्यकूं करते कूं भला फ नाहीं जानूंगा कायकरि ऐसा गुणचासवां भंग है । यामैं एक अनुमोदनापरि एक काय लगाया तातें ग्यारह की समस्या भई । ४९ | ११ | ऐसें ग्यारहकी समस्याके नव भंग भये । ऐसे गुणचोस भंग sererrar भये । तिनिमैं तेतीसकी समस्याका एक | १| बत्तीसके तीन 11 इकतीसके तीन | ३ | तेईसके तीन |३| बाईसके नव १९ । इकईसके नत्र || तेरा के तीन ॥३॥ बाराके ॥६ 卐 ग्याराके || ऐसें सब मिलि गुणचास भये । अब इस अर्थका कलशरूपकाव्य कहे हैं । आर्याछन्दः
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प्रत्याख्याय भविष्यत् कर्म समस्तं निरस्तसम्मोहः । आत्मनि चैतन्यात्मनि निष्कर्मणि नित्यमात्मना ad ||३५|| इति प्रत्याख्यानकल्पः समाप्तः ।
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अर्थ - प्रत्याख्यान करनेवाला ज्ञानी कहे है । जो आगामी समस्त कर्मनिकूं में प्रत्याख्यान
क रूप त्याग करि, अर नष्ट भया है मोह जाका ऐसा भया संता कर्मसू रहित चैतन्यस्वरूप जो 5
आत्मा ताविषै आपहीकरि तूं हां ।
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भावार्थ – निश्चयचारित्रमै प्रत्याख्यानका विधान ऐसा है, जो समस्त आगामी कर्मसु रहित
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अपना शुद्धचैतन्यकी प्रवृत्तिरूप जो शुद्धोपयोग तावियें वर्तना है । सो ज्ञानी आगामी समस्त
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