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卐 विशेषरूप कर्म तिनितें जो चेतयिता आत्मा अपने आत्मा निवर्तन करै छडावै सो आत्मा प्रतिसमय - क्रमणस्वरूप है । बहुरि जो आगामी कालमै कर्म शुभ तथा अशुभ जिस भावके होतें बंधे हे तिस।
अपने भावतें जो चेतयिता निवृत्त होय छूटै सो आत्मा प्रत्याख्यानस्वरूप है । बहुरि जो वर्तमान कालमैं शुभ तथा अशुभ कर्म अनेक प्रकार ज्ञानावरण आदि विस्ताररूप विशेषनिकू लिये उदय
आया ताकू दोषकू जो चेतयिता चेतरूप भया चेते, येदै-अनुभव, तिसका स्वामिपणा कर्तापणा' ' छोडै सो आत्मा आलोचनास्वरूप है । ऐसें जो आत्मा नित्य प्रत्याख्यान करे है, नित्य प्रतिक... मण करे है, निस्य आलोचना करे है सो चेतयिता चारित्रस्वरूप है।
卐 _____टोका-जो आत्मा पुद्गलकर्म के उदयतें भये भावनितें अपने आत्माकू निर्वर्तन करें, छुडावै ।। सो आत्मा तिस भावकू कारणभूत जो पूर्व अतीतकालमैं किये कर्मकूप्रतिक्रमणरूप करता संता । आप ही प्रतिक्रमणस्वरूप होय है । बहुरि सो ही आत्मा पूर्वकर्मका कार्यभूत जो आगामी बंधेगा प कर्म ताकू प्रत्याख्यानरूप करता त्यागता संता आप ही प्रत्याख्यानस्वरूप होय है। बहुरि सो"
ही आत्मा वर्तमान जो कर्मका उदय तातें आपकू अत्यंत भेदकार अनुभवन करता संता प्रवत, ॐ सो आप ही आलोचनास्वरूप होय है । ऐसें यह आत्मा नित्य प्रतिक्रमण करता संता, नित्य ।
प्रत्याख्यान करता संता, नित्य आलोचना करता संता, पूर्वकर्मक कार्यरूप अर उत्तर आगामी
कर्मके कारणरूप जे भाव तिनिते अत्यंत निवृत्तिस्वरूप भया संता, अर वर्तमान जो कर्मका उदय .. .. तातें आपकू अत्यंत भेदकरि पावता संता अपना जो ज्ञानस्वभाव तिस ही विषं निरंतर प्रवर्तनेते। ने आप ही चारित्रस्वरूप होय है। बहुरि ऐसें चारित्ररूप होता संता आपकू ज्ञानमात्र चेतनेते + अनुभवनेते आप ही ज्ञानचेतनास्वरूप होय है, ऐसा भाव है।
भावार्थ-इहां निश्चयचारित्र प्रधानकरि कथन है। तहां चारित्रमै प्रतिक्रमण प्रत्याख्यान + आलोचनाका विधान है। तहां लग्या दोषतें आत्मा निर्वर्तन करना सो तौ प्रतिक्रमण है। अर...
आगामी दोष लगावनेका त्याग करना सो प्रत्याख्यान है । अर वर्तमान दोषत आत्माकू न्याराका
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