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भावार्थ - ज्ञानका स्वभाव ज्ञेयकूं जाननेहीका है। जैसा दीपकका स्वभाव घटपट आदि ककू प्रकाशनेका है। यह वस्तुस्वभाव है । ज्ञ यकूं जाननेमात्रतें ज्ञानमें विकार नाहीं होय है । अर शेकू जानकार भला बुरा मानि आत्मा रोगी द्वेषी विकारी होय है । सो यह अज्ञान है। 5 सो आचार्य शोच किया है— जो वस्तुका स्वभाव तो ऐसे, अर यह आत्मा अज्ञानी होयकरि रागद्वेषरूप क्यों परिणमे है ? अपनी स्वाभाविक उदासीनता अवस्थारूप क्यों रहें नाहीं ? सो यह फ आचार्यका शोच युक्त है, जाते जेतें शुभ राग है तेतें प्राणीनिकूं अज्ञानतें दुःखी देखि करुणा उपजै तब शोच होय है । अब अगिले कथनको सूचनिकारूप काव्य कहे हैं। शार्दूलविक्रीडित छन्दः
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रहित ऐसा जो ज्ञान तिस स्वरूप है महिमा जाकी ऐसा है । सो ऐसा ज्ञानी बोध्य कहिये ज्ञेय 卐 पदार्थ तिनि किछू भी विक्रियाकूं नाहीं प्राप्त होय है। जैसे दीपक है सो प्रकाशनेयोग्य घटपट ३६ 5 आदि पदार्थ हैं तिनितें विक्रियाकूं प्राप्त नाहीं होय है, तैसें । सो ऐसे वस्तूकी मर्यादाका ज्ञानकरि रहित हैं धिषणा कहिये बुद्धि जिनकी ऐसे भये संते ए अज्ञानी जीव अपनी स्वाभा卐 विक उदासीनताकूं क्यौं छोडे हैं ? अर राग द्वेषमय क्यों होय हैं ? ऐसा आचार्यने शोच किया है।
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राग विभावमुक्तमहतो नित्यं स्वभावस्पृशः पूर्वागामिसमस्त कर्मविकला भिन्नास्तदात्योदयात् । दूरारुटचरित्रवैभवबलानञ्चचिदर्मियों विन्दति स्वरसाभिषिक्तभुवनां ज्ञानस्य सञ्चेतनाम् ॥३०॥
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अर्थ-ज्ञानी है ते कैसे हैं ? राग द्वेष जे विभाव तिनिकरि रहित है मह कहिये तेज जिनिका ।
बहुरि कैसे हैं ? नित्य ही अपना चैतन्यचमत्कारमात्र स्वभाव है ताकूं स्पर्शनेवाले हैं । बहुरि कैसे 卐 ? पूर्वे किये जे समस्त कर्म अर आगामी होयगे जे समस्त कर्म तिनितें रहित हैं । बहुरि कैसे हैं ? तदात्व कहिये वर्तमानकालमें आवै जो कर्मका उदय तातें भिन्न हैं । ऐसें ज्ञानी हैं ते अति5 शयकरि अंगीकार किया जो चारित्र ताका जो विभव समस्त परद्रव्यका त्याग ताके बलते ज्ञानकी 5
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