________________
*க்க*\********
卐
卐
भावार्थ - आत्मा रागादिक उपजे हैं ते अपने हो अशुद्ध परिणाम हैं। निश्चयनयकरि विचा- 5
रिये सब इनिका उपजावनहारा अन्य द्रव्य नाही है। अन्य द्रव्य इनिका निमित्तमात्र हैं । जातें
अन्य दुव्यके अन्य दूव्यगुणपर्याय उपजावे नाहीं यह नियम है । तातें जे ऐसे माने हैं, जो मेरे
* रागादिक परदूव्य ही उपजावे है, ऐसा एकांत करे है, ते नयविभाग में समझे नाही, मिथ्यादृष्टि
हैं। ए रागादिक जीवकै सत्त्वमें उपजे हैं. परद्रव्य निमित्तमात्र है, ऐसें मानना सम्यग्ज्ञान है ।
卐
卐
生
अपने परिणाम भावकरि उपजे हैं। या कारणतें आचार्य कहे हैं जो परदूव्य है, सो जीवकै
RAJA
5 तातें आचार्य ऐसें कहे हैं- -हम राग द्वेषके उत्पत्तिमैं अन्य दूव्यपरि काहे कोप करें ? राग द्वेषका 5
रागादिकका उपजावनहारा नाहीं देखे है, जापरि हम कोप करें।
卐
5
उपजना आपहीका अपराध है। अब इस अर्थ के कलशरूप काव्य कहे हैं ।
मालिनीछन्दः यदि भवति रागद्वे पदोषप्रसूतिः कतरदपि परेषां दूषणं नास्ति तत्र ।
स्वयमयमपराधी तत्र सर्पत्यबोधो भवतु विदितमस्तं यात्वबोधोऽस्मि बोधः ||२७||
फफफफफफफफ
अर्थ- जो इस आत्मावि राग द्वेष दोषकी उत्पत्ति हैं तहां परद्रव्यकूं किछू भी दूषण नाहीं
卐 है । ति आत्मविषै यह अज्ञान आप अपराधी फैले है । यह कथन प्रगट होऊ, अर यह अज्ञान 5 है सो अस्त होऊ । जातें मैं तो ज्ञानस्वरूप हों, ऐसें मानना सम्यग्ज्ञान है ।
卐
भावार्थ - अज्ञानी जीव राग द्वेषकी उत्पत्ति परदूव्यतें मानि परद्रव्यतें कोप करे है। जो
5 मेरे परद्रव्य राग द्वेष उपजावे है ताकू दूरी करूं । ताकूं समझानेकू कहे है। जो राग द्वेषकी 5
उत्पत्ति अज्ञान आपही केविषै होय हैं । ते आपहीके अशुद्ध परिणाम हैं। सो यह अज्ञान
卐
卐
नाशंकु प्राप्त होऊ, अर सम्यग्ज्ञान प्रगट होऊ आत्मा ज्ञानस्वरूप है ऐसा अनुभव करौ । राग 卐
५
द्वेष उपजने में परद्रव्यकू' उपजावनहारा मानि तिसपरि कोप मति करो। ऐसा उपदेश है। अब इस ही अर्थ दृढ करने अर अगिले कथन की सूचनिकारूप काव्य कहे हैं ।
卐