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हारकरि कहा साध्य है ? किछू भी नाही तो यह ठहरी, जो चेतयितो कोईका भी दर्शक नाही" । नमय दर्शक है सो दर्शक ही है । इहां निश्चयनयविषै स्वस्वामि अंशका व्यवहारकरि कहा साध्य है ? फ किछू भी नाही यह निश्चय है ।
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"अब तैसें ही चारित्रकूं कहे हैं। तहां जैसी सेटिका है, सो प्रथम ही श्वेतगुणकरि भरथा स्वभाव जाका द्रव्य है । ताकै व्यवहारकरि श्वेत करने योग्य कुटी आदि परद्रव्य है । अब यहां दोऊ परमार्थकरि संबंध विचारिये है । श्वेत करने योग्य कुटी आदि परद्रव्य है ताकी 5 श्वेत करनेवाली सेटिका है कि नाही है ? तहां जो सेटिका कुटी आदिकी है, ऐसें मानिये तौ यह न्याय है, जो जाका होय सो वह सो ही है, अन्य नाहीं है । जैसा आत्माका ज्ञान होता संता आत्मा ही है, अन्य न्यारा दूव्य नाहीं है, ऐसा परमार्थरूप तस्वसंबंधकूं जीवता विद्यमान 5 होतें सेटिका कुटी आदिकी होती सती कुटी आदि ही होय, ऐसें होतें सेटिकाका स्वद्रव्यका उच्छेद होय, सो व्यका उच्छेद होय नाही । जातै अन्य दूव्यका पलटिकरि अन्यद्रव्य होनेका
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पहिले प्रतिषेध कर आये हैं, तातें सेटिका कुटयादिककी नाही है। तहां पूछे है, जो कुटया
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दिकी नाही है तो कौनकी सेटिका है ? ताका उत्तर-सेटिकाही की सेंटिका है । फेरि पूछे हैं,
5 वह दूजी सेटिका कौनसी है ? जाकी यह सेटिका है। ताका उत्तर- जो इस सेटिकातें अन्य फ सेटिका तौ नाही है । तौ कहा है ? स्वास्वामि अंश हैं, ते ही अन्य हैं। तहां कहे हैं -स्वस्वामि5 अंशकर निश्चयनयविषै कहा साध्य है ? किछू भी नाहीं । तो यह ठहरी जो सेटिका अन्य arght भी नाही है, सेटिका है सो सेटिका ही है ऐसा निश्चय है। जैसा यह दृष्टांत है, तैसा दातिक अर्थ है, जो चेतयिता आत्मा है, सो प्रथमही ज्ञानदर्शनगुणकरि भरघा परका त्याग- 卐 रूप है स्वभाव जाका ऐसा द्रव्य है, ताकै व्यहारकरि त्यागने योग्य पुद्गल आदि परदूव्य हैं। अब इहां दोऊकै परमार्थतत्त्वरूप संबंध विचारिये है, जो त्यागने योग्य जो पुद्गल आदि 5 परद्रव्य, ताका त्यागनेवाला चेतयिता है कि नाही है ? जो चेतयिता पुद्गल आदि परद्रव्यका
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