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卐 परस्परमविशेषदर्शनेनाविशेषज्ञानेनाविशेषविरत्या च समस्तं भेदमपनुत्य नेयज्ञायकभावापन्नयोः परात्मनोः सामान्या- १ प... धिकरण्येनानुभवनाद्धर्मोहमधर्मोहमाकाशमहं कालोहं पुद्गलोहं जीवांतरमहमित्यात्मनो विकल्पमुत्पादयति । नतोयमात्मा , धर्मोहमधर्मोहमाकाशमहं कालोहं पुद्गलोहं जीवांतरमहमिति भ्रांत्या सोपाधिना चैतन्यपरिणामेन परिणमन् तस्य ॐ सोपाधिचैतन्यपरिणामत्वरूपस्यात्मभावस्य का स्यात् । ततः स्थितं कत्वमूलमनानं ।
. अर्थ-यह उपयोग है सो तीन प्रकार भया संता धर्म आदिक द्रव्यरूप आत्मविकल्प करे
है तिनिकू आपा जाने है, सो तिस उपयोगरूप अपना भावका कर्ता होय है। म टीका-यह सामान्यकरि अज्ञानरूप सविकार चैतन्यपरिणाम सो ही मिथ्यादर्शन अज्ञान ... अविरतिरूप तीन प्रकार है, सो यह जीव परका अर आपका परस्पर विशेष नाहीं देखनेकरि तथा ?
अविशेष अधर्म द्रव्य हूँ मैं रतिकरि समस्त भेदनिकू लोपकरि ज्ञेयज्ञायकभावकू प्राप्त जे धर्म आदि * । द्रव्य तिनिकू अपना अर तिनिका एक आधारके अनुभवन करनेतें ऐसें माने है-जो मैं धर्मद्रव्य
है मैं अधर्म द्रव्य हूं मैं आकाशद्रव्य हूं मैं कालद्रव्य हूं मैं पुद्गलद्रव्य हूँ मैं अन्य जीव • भी हूं ऐसे भ्रमकरि उपाधि सहित अपना भया जो चैतन्यपरिणाम, तिसकरि परिणमता संता, - तिस उपाधिसहित चैतन्यपरिणामरूप जो अपना भाव, ताका कर्ता होय है। म भावार्थ-यह आत्मा अज्ञानतें धर्मादिद्रव्यवि भी आपा माने है, सो तिस अपना अज्ञानरूप । चैतन्यपरिणामका आप कर्ता होय है। इहां कोई पूछ-पुद्गल अर अन्य जीव तौ प्रवृत्तिमैं दीखें,
तिनिधि तौ अज्ञानतें आपा मानना समझे। बहुरि धर्मद्रव्य, अधर्मद्रव्य, आकाशद्रव्य, काल। द्रव्य तौ दृष्टिगोचर नाही, तिनिविर्षे आपा मानना कया, सो कैसे ? ताका समाधान-जो धर्मा..... या दिकका भी लक्षण अनुभवनमै आवे है। तहाँ धर्म अधर्मका तौ गतिहेतुपणा स्थितिहेतुपणा, * है, तिनिफू गमन करना तिष्ठना जातें होय तिसविर्षे ममत्वबुद्धि होय है। बहुरि आकाशका अब-... ___गाहरूप क्षेत्रविर्षे ममत्व होय है । अर कालका समय मुहूर्त आदिमैं मरना जीवना आदि कार्य -