________________
$
$
$
$
के क्षय न होय, तौ तिसके मरण करने कोऊ न समर्थ होय । बहुरि अपना आयुकर्म अन्यके 1- अन्यकरि हरनेका असमर्थपणा है । आयुकर्म तो अपना उपभोगहीकरि क्षयरूप होय है, तातें
अन्य है सो अन्यके मरण काहू प्रकार भी करे नाहीं है । तातें जो ऐसा माने है, अभिप्राय करे प्राभूत क है, जो में परजीवकू हणूई, तथा परजीव मोकू हणे हैं, सो यह अध्यवसाय निश्वयकरि ।। - अज्ञान है। 9 भावार्थ-जो जीवके मान्य होय अर तिस मान्यरूप कार्य न होय सो ही अज्ञान,सो मरण , .. आपके परका किया होय नाही, परके आपका किया होय नाही, अर यह प्राणी माने सो ही
अज्ञान है, यह निश्चयनय प्रधान कथन है। बहुरि परस्पर निमित्तनैमित्तिकभावकरि पर्यायका + म उत्पाद व्यय होय ताकू जन्ममरण कहिये है। तहां जाके निमित्ततें होय ताकू ऐसे कहिये, जो " याने याकूमारथा, सो यह कहना व्यवहार है । सो इहां ऐसा मति जानू'-जो व्यवहारका 卐 ॐ सर्वथा निषेध है। जे निश्चयकू न जाने तिनिका अज्ञान मेटनेकू कया है। याकू जाने पीछे
दोऊ नयके अविरोध जानि यथायोग्य नय मानना । फेरि पूछे हैं, जो मरणके अध्यवसायकू तौ + अज्ञान कहा सो जान्या, अर तिस मरणका प्रतिपक्षी जो जीवनेका अध्यवसाय, ताकी कहा - वार्ता है ? ऐसे पूछ उत्तर कहे हैं । गाथा
जो मण्णदि जीवेमिय जीविज्जामिय परेहि सत्तेहिं । सो मूढो अण्णाणी णाणी एत्तोदु विवरीदो ॥१४॥
यो मन्यते जीवयामि जीव्ये चापरैः सत्वैः ।
स मूढोऽज्ञानी ज्ञान्यतस्तु विपरीतः ॥११॥ + आत्मख्याति:-परजीवानहं जीवयामि परजीवजींन्ये चाहमित्यध्यवसायो भ्रषमज्ञानं स तु यस्यास्ति सोशानि-4 .. त्वान्मिध्याष्टिः । यस्य तु नास्ति स झानित्वात् सम्यग्दृष्टिः।
$
$
+
$
+
s
+
5